हमारी बहिनों के मन में कई बार मासिक धर्म को लेकर प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्न कई बार हमारी बहिनें हमें भेजती हैं कि उन दिनों में वे भजन कैसे करें……ऐसे ही कुछ प्रश्नों की चर्चा यहाँ पर की जा रही है --
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प्रश्न 1-- स्त्रियों की अपवित्र अवस्था में क्या हमें पूजा, भगवान का अर्चन आदि करना चाहिये ?
उत्तर ये एक स्वाभाविक प्रश्न है। महान वैष्णव आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी इस बारे में बताते हैं कि हरिनाम तो हमेशा ही करना होगा, पवित्र अवस्था हो या अपवित्र अवस्था हो। हरिनाम करने के लिए कहीं भी, कभी भी मना नहीं है । दिन-रात, सुबह-शाम, सब समय, पवित्र स्थान व अपवित्र स्थान ..... हरिनाम कहीं नहीं रुकेगा, यहाँ तक कि श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अपने छोटे से भक्त गोपाल के माध्यम से यह भी समझाया था कि अगर आप जंगल क्रिया कर रहे हैं, मतलब बाथरूम में हैं, लैट्रीन में हैं, उस समय भी आप हरिनाम कर सकते हैं।
एक बार ऐसी ही परिस्थिति बनी। देहरादून की बात है। पवित्र कार्तिक मास चल रहा था। एक दिन सुबह के याम कीर्तन के बाद ठाकुर जी की आरती हुई, फिर प्रभात फेरी हुई, प्रभात फेरी से वापिस आकर फिर कीर्तन हुआ, उसके बाद गुरूदेव श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने मुझे बुलाकर पूछा कि आज प्रभात फेरी में विष्णुप्रिया को नहीं देखा, जो जालन्धर से आई है। सब कुशल तो है ?
मैंने जवाब दिया-- गुरूजी मैंने ध्यान नहीं दिया । अभी देखकर आता हूँ ।
विष्णुप्रिया दीदी को जहाँ ठहराया गया था, मैं वहाँ गया और मैंने उन्हें बताया कि गुरूजी ने मुझे भेजा है, पूछने के लिए कि सब सकुशल तो है, आप सुबह नहीं आयी, मठ में ।
मेरी बात सुनकर उन दीदी ने बताया कि इन दिनों मैं आ नहीं सकती। मैंने कहा अभी तो गुरुजी बुला रहे हैं।
उन्होंने कहा - इस स्थिति में क्या मैं गुरूजी के पास जा सकती हूँ ?
मैंने कहा - इस समय तो गुरूजी की आज्ञा पालन करनी है हमने, उन्होंने बुलाया है तो उनके पास जाना ही पड़ेगा। आप गुरू जी से, ये जो स्त्रियों का मासिक सिस्टम है, Down system है, इससे सम्बंधित सारे प्रश्न भी कर लेना।
गुरू जी के पास पहुँचे प्रणाम किया और मैंने बताया कि मासिक अवस्था के कारण ये आज प्रभात फेरी के संकीर्तन में नहीं आईं।
गुरू जी - नगर संकीर्तन में तो जा सकते हैं, इसमें तो कोई समस्या नहीं है।
विष्णुप्रिया जी - इस स्थिति में आपको प्रणाम कर सकती हूँ ?
गुरुजी - वो तो तुमने कर लिया।
(अर्थात् गुरू-वैष्णवों को प्रणाम कर सकते हैं।)
विष्णुप्रिया जी - मैं मन्दिर में ठाकुर जी को प्रणाम करने जा सकती हूँ ?
गुरूजी - अपवित्र अवस्था में तो नहीं जा सकते भगवान के सामने।
विष्णुप्रिया जी - आपकी हरिकथा में आ सकते हैं ?
गुरूजी -- हरिनाम जप, कीर्तन व हरिकथा सुनने में कोई बाधा नहीं है, बस यह है कि ऐसे स्थान पर बैठना पड़ेगा कि श्रीविग्रहों की निगाह जहाँ तक जाती है, उनके सामने नहीं आना क्योंकि यह अर्चन का नियम है।
हरिकथा सुनना, कीर्तन करना भजन के अन्तर्गत हैं। और कहीं भी बैठ सकते हैं। मन्दिर परिक्रमा नहीं कर सकते हैं।
विष्णुप्रिया जी - हरिनाम कर सकते हैं ?
गुरूजी - हरिनाम तो कर सकते हैं किन्तु माला पर नहीं कर सकते हैं।
विष्णुप्रिया जी - तो फिर रोज संख्यापूर्वक हरिनाम करने का जो नियम है, उसका क्या होगा ?
गुरूजी - आपकी जितनी संख्या है, उसमें जितना समय लगता है, उतने समय के लिये हरिनाम करो, अंगुली पर कर सकते हैं, घड़ी के हिसाब से कर सकते हैं। अर्थात् हरिनाम करना है, किन्तु माला पर नहीं करना है।
विष्णुप्रिया जी - संध्या-वन्दना कर सकते हैं ?
गुरूजी -- आसन पर कैसे बैठेंगे? वो तो अपवित्र हो जायेगा।
मैंने पूछा - यह नियम कितने दिन पालन करना होगा दीदी को ?
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