रविवार, 22 दिसंबर 2019

भगवान जगन्नाथ जी

श्रीकृष्ण की रानियाँ एक बार आपस मे चर्चा करने लगीं कि श्रीकृष्ण वृजवासियों को याद कर-करके अपन समय बिताते हैं। किसी एक ने कहा कि एक बार तो इनका तकिया ही भीग गया रोने से, तो दूसरी ने कहा कि वहाँ की गायें को याद करते रह्ते हैं,  किसी ने कहा कि वे श्रीनन्द बाबा, यशोदा जी को, गोपियों को याद करते हैं, ये उनको भुला क्यों नहीं पा रहे हैं? हम इतना समय दे रहे हैं, फिर भी कुछ न कुछ कमी तो है! तो ऐसे व्यक्ति को खोजा जाये जिसने हमारे कृष्ण को गोकुल, नन्द गाँव में देखा हो, और यहाँ द्वारिका में भी देख रहा हो। ऐसा व्यक्ति ही बता सकता है कि क्या कमी है हमारी सेवा में? 

सबने विचार कर निश्चय किया कि माता रोहिणी इस बारे में बता सक्ती हैं  क्योंकि रोहिणी माता जी वहाँ पर भी थीं और यहाँ भी हैं। इस प्रकार का निश्चय कर भगवान की 16108 रानियाँ, बलराम जी की माताजी रोहिणी देवी से मिलने चली गयीं। 

रोहिणी माता कि प्रणाम कर, उन्हें घेर कर बैठ गयीं। जब माता रोहिणी ने उनकी बात सुनी तो उन्होंने कुछ गम्भीर होते हुए कहा कि मैं वहाँ की बातें बता सकती हूँ किन्तु कन्हैया को अच्छा नहीं लगेगा। रानियों ने कहा कि ऐसी जगह चले जाते हैं जहाँ कन्हैया न हो। 

माता -- वो तो सभी जगह पर आ जाते हैं, जहाँ पर उनकी चर्चा होती है,कीर्तन होता है, वहाँ आ जाते हैं। रानियाँ -- आप चिन्ता न करें। हम कक्ष के दरवाज़े को बन्द कर देंगे और सुभद्रा को वहाँ बिठा देंगे। वो श्रीकृष्ण - बलरामजी को अन्दर नहीं आने देगी और यदि वे आयेंगे तो सुभद्रा हमें सूचना दे देगी जिससे हम बातें बदल देंगी। 

तो-----------------निर्णय हो गया। सारे के सारे एकत्रित हो गये और दरवाज़े पर बिठा दिया सुभद्रा जी को। रोहिणी मैया ने बृज की बातें शुरु करीं, श्रीकृष्ण का घुटनों के बल चलना, श्रीकृष्ण का माखन चुराना, श्रीकृष्ष का सारे वृजवासियों का दिला चुराना, उनका कृष्ण पर सब कुछ लुटा देना, नन्द महाराज जी की चर्चा, गवाल बालकों की चर्चा, यशोदा मैया की चर्चा, वृक्ष लताओं की चर्चा, गोपियों की चर्चा, जब ये चर्चा चल रही थी उस समय सब के सब बड़े ही हैरान होकर इसे सुन रहे थे। इतना समर्पण , इतना भाव, इतनी प्रेममयी सेवा, सभी हैरान थे ऐसी अद्भुत चर्चा सुनकर। इतने भाव में विभोर हुये का रहे थे कि आँखें बड़ी-बड़ी सी हो गयी थीं सबकी। 

सुभद्रा जी बाहर खड़ी सब सुन रही थीं और हैरान हुए जा रही थीं कि मैं सोचती थी कि मेरा सेवा भाव बहुत ज्यादा है, समर्पण ज्यादा है, किन्तु वृज की तो बात ही निराली है। ध्यान इधर होने के कारण उन्हें पता ही नहीं चला कि कब श्रीकृष्ण-बलराम जी चुपचाप आ गये। 

ठाकुर ने तो आना ही था, क्योंकि उनका वचन है कि मेरे भक्त जहाँ भी मेरा गुण्गान करते हैं, मैं वहीं आ जाता हूँ। यहाँ माता रोहिणी जी वृज की चर्चा कर रही थीं, ऐसी दिव्य चर्चा को सुनने श्रीकृष्ण व श्रीबलराम चले आये। 

सुभद्राजी ने देखा तो इससे पहले कि वे कुछ कर पातीं, सुभद्रा जी के मुख पर हाथ लगा दिया कन्हैया ने, इशारे से बोला अन्दर नहीं जा रहे हैं, यहीं बैठे - बैठे सुनेंगे। अब दृश्य ऐसा बना कि सुभद्रा जी, श्रीकृष्ण, बलराम जी तीनों दरवाजे पर बैठे हैं और भीतर सारे रोहिणी मैया से कृष्ण कथा सुन रहे हैं, माता वृज के भावों का वर्णन कर रही हैं। 

सुभद्रा तो सुभद्रा, प्रेम-भाव में कृष्ण बलराम जी की भी स्थिति ऐसी बनी वृज लीला सुनकर की उनकी भी आँखें बड़ी हो गयीं , उनके हाथ-पैर अन्दर चले गये भाव में । दिव्य प्रेम की अवस्था में कृष्ण-बलराम-सुभद्रा जी की आँखें बड़ी हो गयी। प्रेम-मय अवस्था ऐसी ही होती है। 

उसी समय नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे, उन्होंने भगवान का ऐसा रूप देखा तो सोचने लगे कि यह क्या है? नारद जी हैरान हो गये इस अवस्था को देख कर। उन्होंने सारी स्थिति को भांपा और झट से श्रीकृष्ण-बलराम-सुभद्राजी को प्रणाम किया। 

बाहर कुछ हल्का सा शोर-गतिविधि होती देख, रोहिणी माता जी ने विषय को बदल दिया। सभी ऐसे चौंके जैसे नींद से जागे हों। 

नारद जी ने कर जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु इस स्वरूप को आप प्रकट कर दें, ये आपका प्रेममय स्वरूप अद्भुत है। आपके अन्य स्वरूप देखे, प्रेममय स्वरूप नहीं देखा, आप अपनी ही प्रेम लीला में डूबे हो, यह स्वरूप नहीं देखा, ये प्रेम अवस्था में प्रकट हो जाओ। 

भक्त की प्रार्थना को अंगीकर करते हुए श्रीकृष्ण-बलराम-सुभद्रा जी जिस क्रम में दरवाज़े पर बैठे थे, जिस प्रेममयी अवस्था में थे, वही स्वरूप लिये प्रकट हो गये श्री जगनाथ-बलदेव -सुभद्रा जी के रूप में।

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