बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

भगवद्-भक्तों की स्थिति

भगवान का शरणागत भक्त अपने हृदय में केवल भगवान की कृपा को ही अनुभव करता है। वो ऐसी स्थिति में होता है तो बहुत धन हो तो भी खुश नहीं और बहुत कंगाल हो तो तो भी शिकायत नहीं,  दीर्घ जीवन है तो सेवा में व्यस्त, अचानक मौत देखेगा तो केवल अपने प्रभु को स्मरण ही करेगा।

एक बार डाक्टर ने जब श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्राक्तन आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज से कहा कि अब ज्यादा समय नहीं है तो उन्होंने कहा कि मुझे वहाँ ले चलो जहाँ मेरे गुरुजी ने शरीर छोड़ा था, मैं वहीं शरीर छोड़ूँगा। उनके सेवक जब यह सुनकर रोने लगे तो वे हैरान होकर बोले -- इसमें रोने की क्या बात है? सारी ज़िन्दगी क्या बोलते रहे हैं? भगवान कृष्ण कहते हैं जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य होगी। हमने सारी ज़िन्दगी भगवान कृष्ण की बात का प्रचार किया है कि जो आया है वो जायेगा ही, मृत्यु लोक है ये इसमें रोने की क्या बात है? ये क्या प्रचार हुआ, कि दूसरों को तो सुना रहे हैं और जब अपने पर आये तो रोने लगे। 
हमारे चण्डीगढ़ मठ के पूर्व इन्चार्ज श्रील निष्किन्चन महाराज जी ने इस संसार से जाने से कुछ दिन पहले, 1-2 सप्ताह पूर्व अपने सेवकों को कहा -- लड़को! कोई शुभ दिन देखो, मैंने जाना है। वो ऐसे बोल रहे हैं जैसे उन्होंने किसी दूसरे शहर घूमने जाना है। उन्होंने स्वयं ही अपने जाने का दिन निश्चित कर लिया -- एकादशी तिथि। उन्हें एकादशी से बहुत प्यार था। उस दिन मंगला आरती से पहले मन्दिर आ गये और सभी से बारी-बारी महामन्त्र सुनाने के लिये कहा और कहा की इसे जपते रहना, मैंने आज चले जाना है। उस दिन जो भी मिला, उससे महामन्त्र सुनते और बताते कि मैंने चले जाना है।

हमारी गुरु बहिन ने कहा -- महाराज आप ऐसे कैसे बोल रहे हैं कि मैंने चले जाना है, आपसे तो बहुत कुछ सीखना है मैंने। आपने कहा -- मैंने जो सिखाना था, सिखा दिया, मैंने आज चले जाना है।

उसी रात को दूध का गिलास हाथ में ले और भगवद् स्मरण करते-करते चले गये। यह है भगवद्-भक्तों की स्थिति। 

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