सोमवार, 26 अगस्त 2019

हमारी प्रार्थना भगवान क्यों नहीं सुनते?

श्रीप्रह्लाद महाराज जी कहते हैं कि मैंने गुरूजी से सुना कि बहुत बड़ा पंडाल लगा हो, उसमें बहुत से लोग बैठ कर हरिकथा सुन रहे हों, उनमें आप भी बैठकर हरिकथा सुन रहे हों, भक्तों की महिमा सुन-बोल रहे हों तो हम यह नहीं कह सकते कि आप भक्ति कर रहे हैं। आप एकान्त में बैठ कर भगवान के बरे में सोच रहे हैं] उनकी लीला का चिन्तन कर रहे हैं, तो हम यह नहीं कह सकते कि आप स्मरण भक्ति कर रहे हैं।  भगवान की कथा सुनना, बोलना, स्मरण करना भक्ति है इसमें कोई दो राय नहीं है,  किन्तु ये भक्ति बनती है जब आप अपने को भगवान के चरणों में समर्पित करने के बाद इसे करते हैं, तब। भगवान के पादपद्मों में शरणागति होने के बाद, भगवान के पादपद्मों में अपने आप को समर्पण करने के बाद, जो हम भगवान की महिमा बोलेंगे, भक्तों की महिमा बोलेंगे या हरिनाम कीर्तन करेंगे, तो वो कीर्तन भक्ति होगी।
कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी गलती का एहसास नहीं करते, हम को लगता है कि हम इतना भजन करते हैं और भक्ति के बारे में दिया है हमारे रूप गोस्वामि जी ने कि भक्ति तो रसामृत सिन्धु है, अखिल रसामृत सिन्धु है, भगवान की भक्ति, भगवान की सेवा, एक ऐसा आनन्द का समुद्र है जिसका दूसरा छोर दिखाई ही नहीं देता, भगवद भक्ति एक ऐसा आनन्द का समुद्र है जिसकी गहराइ का पता नहीं है, भगवान की भक्ति करना ऐसा आनन्द का विषय है कि व्यक्ति की क्लेशाग्नि खत्म हो जाती है, क्लेश रहते ही नहीं। सूर्य उदित होने के बाद अंधेरा थोड़ा न रहता है, कमरे में लाइट जलाने से अंधेरा चला जाता हि, व्यक्ति को ज्ञान हो जाने के बाद, अज्ञान थोड़ा न रहता है, कहने का अर्थ यह है कि व्यक्ति सोचता है भक्ति की इतनी महिमा सुनता हूँ, पढ़ता हूँ और मैं भक्ति कर रहा हूँ पर मेरे जीवन में ऐसा कुछ तो घट नहीं रहा है कि मेरे सारे दुःख, क्लेश चले गये हों, मेरा जीवन आनन्द से भरपूर हो, तो, उसको संश्य होने लगता कि संत गलत बोलते हैं, ग्रन्थ गलत बोलते हैं, उसे अपनी गलती का एहसास नहीं होता कि वो नींव के बिना ही चल रहा है, भगवान की कथा सुन बोल रहे हैं, ठीक है किन्तु अपने आप को भगवन के चरणों में शरणागर करने के बाद ही हरिकथा को श्रवण करना ही श्रवण भक्ति कहलाता है। 


भगवान धाम का चिन्तन करना स्मरण करना, स्मरण भक्ति कहलाता है किन्तु अपने आप को भगवान के चरणों में समर्पण करने के बाद।

हमारे भक्ति विनोद ठाकुर जी ने लिखा कि अगर शरणागति के बगैर हमने कोई प्रार्थना भी भगवान से की, ……… भगवान उस प्रार्थना की ओर ध्यान ही नहीं देते हैं। मैं भले ही रो रो कर, नाच-नाच कर, हँस कर करूँ लेकिन शरणागति के बगैर भगवान उस प्रार्थना को अनदेखा कर देते हैं।

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