
भारत में वेद-शास्त्र की आलोचना और वर्णाश्रम-धर्म के क्रिया-कलाप, बौद्धों के शून्यवाद से चक्कर में पड़कर शून्यप्रायः हो गये थे। शून्यवाद ईश्वर-विहीन है। उसमें जीवात्मा का तत्त्व कुछ-कुछ स्वीकृत होने पर भी वह धर्म बिल्कुल ही अनित्य है।

भारत वर्ष इस महान कार्य के लिये श्रीशंकराचार्य जी का सदा ॠणी रहेगा।सभी कार्यों क जगत् में दो प्रकार से विचार होता है। कुछ कार्य तात्कालिक होते हैं और कुछ सार्वकालिक । श्रीशंकराचार्य जी का यह कार्य तात्कालिक था। श्रीशंकराचार्य जी ने जो नींव डाली, उसी नींव के ऊपर श्रीरामानुजाचार्य आदि आचार्यों ने विशुद्ध वैष्णव-धर्म का महल खड़ा किया। अतएव श्रीशंकरावतार (श्रीशंकराचार्य जी) वैष्णव धर्म के परम बन्धु हैं।
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