श्रीकृष्ण का भजन करना, श्रीकृष्ण कि सेवा करना, जन्म-जन्मान्तर में श्रीकृष्ण की सेवा में नियोजित रहना ही हमारे जीवन का उद्देश्य है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
परन्तु ये तब सम्भव है जब हम श्रीकृष्ण के स्वरूप को जानते हों, उन्हें समझते हों व साथ ही मेरा श्रीकृष्ण से क्या सम्बन्ध है इसको जब तक हम अच्छी तरह से नहीं जानेंगे, तब तक हम अपने इस उद्देश्य को नहीं समझ सकते। श्रीकृष्ण को साधारण मनुष्य मानेंगे तो तमाम प्रकार की शंकायें हमारे मन में आयेंगी, जिसके चलते हमारा पतन हो सकता है, ऐसी ही एक शंका परमपूज्यपाद श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त नरायण गोस्वामी महाराज जी ने समाधान की।
बहुत से लोग कहते हैं कि श्रीकृष्ण का चरित्र अच्छा नहीं था, वो तो एकान्त में गोपियों से बात करते थे, उनके साथ रास करते थे, उन्होंने गोपियों के वस्त्र हरण किया था, आदि। पूज्यपाद महाराजश्री कहते हैं मूर्ख लोग ही ऐसा कहते हैं, श्रीकृष्ण को न जानने वाले ही ऐसा कहते हैं।
वो कहते हैं भला सोचो कि श्रीकृष्ण चीर हरण से द्रौपदी को बचाते हैं, जब द्रौपदी का चीर-हरण हो रहा था और कोई भी उसकी सहायता को आगे नहीं आ रहा था उस सभा में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का चीर-हरण होने से बचाया, उसकी बे-इज्जती होने से बचाया। जो स्वयं दूसरों का चीर हरण होने से रोकते हों वे कैसे दूसरों का चीर हरण कर सकते हैं, सम्भव ही नहीं है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण जिस तरह से स्त्रियों का सम्मान करते हैं, श्रीकृष्ण जिस प्रकार से स्त्रियों की रक्षा करते हैं उनकी सहायता करते हैं, ऐसा उदाहरण संसार में और कोई नहीं मिलेगा।
एक छोटी सी बात उन्होंने बताई कि पूतना श्रीकृष्ण को जहर देकर मारने के लिये आयी। लेकिन वो आयी माँ का स्वरूप बनाकर, एक राक्षसी के वेष में नहीं आयी। और एक माँ जैसे बच्चे को गोद में लेती है, उसने गोद में उठाया, एक माँ जैसे बच्चे को दूध पिलाती है, दूध पिलाया, भले ही उसका उद्देश्य गलत था, भले ही वो दूध के माध्यम से जहर देकर मारना चाहती थी, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने विचार किया कि पूतना ने मुझको माँ की
तरह गोद में उठाया, माँ की तरह दूध पिलाया, इक माँ की तरह अपनी बाज़ुओं में झुलाया, अतः भगवान श्रीकृष्ण ने मन ही मन कहा कि अरी पूतना, तुझे मैं असली माँ की गति दे देता हूँ और श्रीमद् भागवत के दसवें स्कन्ध में श्रीशुकदेव गोस्वामी जी, परीक्षित महाराज जी को कहते हैं भगवान कृष्ण ने पूतना को गोलोक धाम में माता के समान गति प्रदान करी। आज पूतना गोलोक धाम में श्रीकृष्ण की, गोपाल जी की सेवा में है, नन्द भवन में है, माता यशोदा के आनुगत्य में उनको भी सेवा मिली हुई है। जैसे जैसे माता यशोदा सेवा के लिये बोलती हैं वो एक धाई की तरह एक Maid की तरह गोपाल जी की संभाल करती है, उनकी सेवा करती हैं।
जो भगवान श्रीकृष्ण पूतना को माता के समान गति प्रदान कर सक्ते हैं, वे कैसे किसी स्त्री का अपमान कर सकते हैं? तरह गोद में उठाया, माँ की तरह दूध पिलाया, इक माँ की तरह अपनी बाज़ुओं में झुलाया, अतः भगवान श्रीकृष्ण ने मन ही मन कहा कि अरी पूतना, तुझे मैं असली माँ की गति दे देता हूँ और श्रीमद् भागवत के दसवें स्कन्ध में श्रीशुकदेव गोस्वामी जी, परीक्षित महाराज जी को कहते हैं भगवान कृष्ण ने पूतना को गोलोक धाम में माता के समान गति प्रदान करी। आज पूतना गोलोक धाम में श्रीकृष्ण की, गोपाल जी की सेवा में है, नन्द भवन में है, माता यशोदा के आनुगत्य में उनको भी सेवा मिली हुई है। जैसे जैसे माता यशोदा सेवा के लिये बोलती हैं वो एक धाई की तरह एक Maid की तरह गोपाल जी की संभाल करती है, उनकी सेवा करती हैं।
जिन्हें भगवद् ज्ञान नहीं है, वे इस प्रकार कि कलुषित बातें करते हैं, जिनका अपना मन कलुषित है वो ऐसी बातें करते हैं, क्योंकि, जो व्यक्ति जैसा होता है, वो दूसरों को भी वैसा ही समझता है। कामुक ब्यक्ति,
कामना वासना में फंसा व्यक्ति ऐसा ही सोचता है कि दुनिया में सभी कामना वासना में फंसे हैं; उसकी कल्पना में भी नहीं है कि दुनिया में ऐसा भी व्यक्ति होगा जिसके हृदय में संसार के भोगों की ज़रा सी भी कामना न हो। कामी व्यक्ति सोचता है कि मेरी तरह सभी पागल हैं भोगों के लिये। जो पैसे के लिये पागल है वो सोचता है कि सभी पागल हैं धन के लिये, उसकी कल्पना भी नहीं कि दुनिया में ऐसा कोई होगा जिसे पैसे का ज़रा सा भी आकर्षण न हो।
कामना वासना में फंसा व्यक्ति ऐसा ही सोचता है कि दुनिया में सभी कामना वासना में फंसे हैं; उसकी कल्पना में भी नहीं है कि दुनिया में ऐसा भी व्यक्ति होगा जिसके हृदय में संसार के भोगों की ज़रा सी भी कामना न हो। कामी व्यक्ति सोचता है कि मेरी तरह सभी पागल हैं भोगों के लिये। जो पैसे के लिये पागल है वो सोचता है कि सभी पागल हैं धन के लिये, उसकी कल्पना भी नहीं कि दुनिया में ऐसा कोई होगा जिसे पैसे का ज़रा सा भी आकर्षण न हो।
श्रीकृष्ण की वस्त्र हरण लीला से पहले महाराज ने बताया कि द्रौपदी जब मुसीबत में फंसी…तो किसी ने उसकी सहयाता नहीं की, श्रीकृष्ण से अपने भक्त का, नारी का अपमान नहीं देखा गया, जिसने जो सोचना है सोचे, भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी के चारो ओर वस्त्र के रूप में लिपटे रहे, भगवान श्रीकृष्ण का वस्त्रावतार हुआ। भगवान अनन्त हैं, तो उनका वस्त्रावतार भी अनन्त ही होगा, कैसे वस्त्र स्माप्त होता, साड़ी खींचने वाला खींचता गया,
खींचता गया, अनन्त का तो अन्त ही नहीं है न, साड़ी का दूसरा छोर नहीं आया। भगवन श्रीकृष्ण एक स्त्री की लज्जा को बचाने के लिये उसके चीर हरण को रोकने के लिये, द्रौपदी की अपवित्र अवस्था में वस्त्र बनकर उसके चारों ओर लिपट गये क्योंकि जिस समय दुःशासन द्रौपदी को खींच कर लाया था, वो रजस्वला थी, तब भी श्रीकृष्ण ने परवाह नहीं की, अपने भक्त को, एक महिला को नग्न नहीं होने दिया। जबकि वहाँ पर दुष्ट दुर्योधन बैठा है कि इसको नंगा करके मेरी गोद में बिठाओ और दुर्योधन के आगे किसी कि हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ बोल सके, कुछ कर सके, और भगवान श्रीकृष्ण ने सिर्फ़ द्रौपदी को नंगा होने से बचाया ही नहीं बल्कि जिन्होंने ऐसा करने का दुःसाहस किया, एक-एक को नष्ट कर दिया, दुःशासन की दुर्गति करवाई, जो दुर्योधन इशारा कर रहा था कि जांघों पर बिठाओ, उसकी जांघ ही टूट गई। ज़रा सोचिये जो भगवन श्रीकृष्ण की स्त्री की लज्जा को बचाने के लिये इतना कुछ कर सक्ते हैं, वो श्रीकृष्ण द्रौपदी का चीर हरण रोक सकते हैं, वो गोपियों का चीर हरण करेंगे?
खींचता गया, अनन्त का तो अन्त ही नहीं है न, साड़ी का दूसरा छोर नहीं आया। भगवन श्रीकृष्ण एक स्त्री की लज्जा को बचाने के लिये उसके चीर हरण को रोकने के लिये, द्रौपदी की अपवित्र अवस्था में वस्त्र बनकर उसके चारों ओर लिपट गये क्योंकि जिस समय दुःशासन द्रौपदी को खींच कर लाया था, वो रजस्वला थी, तब भी श्रीकृष्ण ने परवाह नहीं की, अपने भक्त को, एक महिला को नग्न नहीं होने दिया। जबकि वहाँ पर दुष्ट दुर्योधन बैठा है कि इसको नंगा करके मेरी गोद में बिठाओ और दुर्योधन के आगे किसी कि हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ बोल सके, कुछ कर सके, और भगवान श्रीकृष्ण ने सिर्फ़ द्रौपदी को नंगा होने से बचाया ही नहीं बल्कि जिन्होंने ऐसा करने का दुःसाहस किया, एक-एक को नष्ट कर दिया, दुःशासन की दुर्गति करवाई, जो दुर्योधन इशारा कर रहा था कि जांघों पर बिठाओ, उसकी जांघ ही टूट गई। ज़रा सोचिये जो भगवन श्रीकृष्ण की स्त्री की लज्जा को बचाने के लिये इतना कुछ कर सक्ते हैं, वो श्रीकृष्ण द्रौपदी का चीर हरण रोक सकते हैं, वो गोपियों का चीर हरण करेंगे?
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