Dearest god sisters and godbrothers, members of ISKCON and of the Gaudiya Math,
There is a feature of Srila A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada which has clearly been hidden from our sight. Many things about one of the greatest souls who walked on earth to give Krishna’s love to the whole world are still unknown. An example of this are the letters he exchanged with many of his godbrothers. In his letters he expressed an intense desire, appreciation, humility and readiness for cooperation.
You can see so much love in these letters, understanding why Srila Prabhupada was an empowered preacher. These letters are not known to the devotees, ISKCON members were told not to trust anybody else in the Gaudiya Math, and that Prabhupapa was the only saint, that he alone had spread the Holy Name all over the world, and that nobody else had anything good to say, or good to do, and were not successful in any way. Therefore, many devotees have misunderstood the saints of the Gaudiya tradition who are initiated in other branches of the same mission. They have a totally distorted attitude which leads them to easily commit offenses and to lose the most precious association, as well as the desire to cooperative with other missions. But let’s leave it at that. I won’t say any more.
भावानुवाद:
प्यारे इस्कान और गौड़ीय मठ के गुरुभाईओ और गुरुबहनों,
श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज, एक महान महात्मा, जिन्होंने समग्र विश्व में श्रीकृष्ण प्रेम को बांटा, उनकी बहुत सी बातें हमें पता ही नहीं हैं, उनके कई गुण हमसे छिपे रहे। उनका एक उदाहरण हैं पत्र व्यवहार जो उनके और उनके गुरु-भाईयों के मध्य चलता रहा। उन पत्रों में आप ने तीव्र इच्छा प्रकट की सबको साथ लेकर चलने की।
पत्र पढ़ कर पता चलता है कि कैसे उनके हृदय में सभी के लिये प्रेम का भाव था। शायद इसी कारण से वे एक शक्तिशाली प्रचारक बने। इन पत्रों का बहुत उल्लेख नहीं आता है। और तो और, इस्कान के सदस्यों को बताया गया है कि गौड़ीय मठ में किसी पर भी विश्वास नहीं करना, श्रील प्रभुपाद ही एकमात्र संत हैं, उन्होंने ने अकेले ही पूरे विश्व में श्रीहरिनाम का प्रचार किया है, और अन्यों ने कुछ अच्छा ना तो बोला, न ही किया और ने ही किसी कार्य में सफल हुए। इसी कारण से बहुत से भक्त, गौड़ीय मठ व गौड़ीय मिशन की परम्परा के अन्य आचार्यों के बारे में भ्रान्त धारणायें बना बैठे। इससे उनके मन इन आचार्यों के प्रति अच्छे संस्कार / विचार नहीं पनप पाये, जिसके कारण वे सहज ही अपराध करने लगे, और साधु-संग से वंचित हो गये। साथ ही साथ अन्य मिशनों के साथ मिलकर चलने भी भावना तो जैसे खत्म ही हो गयी। चलो, इस बात को छोड़ कर अन्य बात करते हैं।
मैं भी इस 'गौड़ीय विरोधी विचार-धारा' से अछूता नहीं रहा। मैं चाहूँंगा कि आप सब भी वे पत्र पढ़ें, और सारी बात को समझें व जानें। इसीलिए तो भगवान ने हमें बुद्धि दी है। उन पत्रों को पढ़ने से पता चलेगा कि श्रील प्रभुपाद जी के मन की बात क्या है और वे कितने उदार हैं? मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि वे कभी किसी से नाराज़ नहीं हुए, किन्तु हमें ये स्मरण करना चाहिये कि इस धरातल से जाने से पहले, श्रील प्रभुपाद जी ने सभी गौड़ीय आचार्य और गड़ीय मठों को आर्थिक सेवा भेजने के लिये कहा था। साथ ही क्षमा याचना के लिये प्रार्थना भी की थी, कि जाने-अनजाने उनसे उनके बारे में कुछ कहा गया हो, प्रचार के दौरान्। उन्होंने ये बात स्वयं श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज, श्रील भक्ति वेदान्त नारायण गोस्वामी महारज व कई अन्यों से कही भी थी।
उन सभी ने यही कहा कि आपने ऐसा कुछ अपराघ नहीं किया, आप तो अपने अबोध शिष्यों की, सरल बच्चों की चिन्ता कर रहे थे। लेकिन अगर वे अबोध बच्चे वही अपराध करें, जिनके लिये श्रील प्रभुपाद जी क्षमा-याचना कर रहे थे, और बार-बार करें, इतना करें कि वह पत्थर की लकीर के समान मन में बस जाये और अन्य वैष्णवों के प्रति सम्मान ही खत्म हो जाये, उनसे बातचीत बन्द हो जाये, इत्यादि तो हमें समझ लेना चाहिये कि हमसे कुछ भूल हो गयी है। मैं उम्मीद करता हूँ कि जब भी इन पत्रों को पढ़ेंगे, तभी आपको श्रील प्रभुपाद जी के बारे में सत्य पता लगेगा, उनकी उदारता के बारे में पता चलेगा।
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Signed by,
Swami BVA Acarya, Swami BA Paramadvaiti, Askalita dasa, Mrganatha Acarya, Mathura Mandala dasa
Signed by disciples of Srila Prabhupada. If you feel the same as this declaration after reading these letters, please add your signatures to this list, to allow new devotees to have a new view and a new reflection upon these topics. (For this purpose, send a short email to: vina.cc@mac.com)
(source: https://www.vina.cc/2018/11/24/introduction-hidden-prabhupada-series/)
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