रविवार, 24 फ़रवरी 2019

श्रील प्रभुपाद के प्रथम दर्शन

एक बार श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी कोलकाता के सम्मेलन में प्रवचन दे रहे थे। प्रवचन करते-करते आपने देखा कि दो युवक सभा में आये और प्रवचन सुनने के लिये बैठ गये।

श्रील प्रभुपाद श्रीमद् भागवतम् के श्लोक -- 'लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं………' की व्याख्या करते हुए कह रहे थे कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है। कब अचानक मृत्यु आ जाये, उसका पता नहीं, इसलिये अभी से हरिभजन शुरु कर दो।

श्रील प्रभुपाद उन दोनों युवकों को देखकर बोल रहे थे -- अभी से हरिभजन शुरु कर दो।

युवक हैरान होकर प्रभुपादजी की ओर देख रहे थे। तभी उन्होंंने प्रभुपाद जी से पूछा -- क्या आप हमें घर भी नहीं जाने दोगे?

प्रभुपाद जी ने कहा -- घर क्यूँ जाना है? अभी से हरिभजन करो।

सरलता से युवक ने कहा कि माना हमारे घर पर आग लग जाये, तब तो घर जाने दोगे।
प्रभुपाद जी -- जल जाये तो जल जाये, उसमें तुहारा क्या? तुम हरिभजन की तरफ ध्यान दो।

हैरान होकर उन्होंने पूछा -- अगर हमारे घर से पड़ोसी के घर में आग लग जाये तो तब भी जाने को मना करोगे?

प्रभुपादजी ने कहा -- पड़ोसी क्या, सारी दुनिया व सारे ब्रह्माण्ड को भी आग लग जाये तो उससे तुम्हारा क्या नुक्सान है? तुम संसार के थोड़े ही हो! तुम तो ब्रह्म से आये हो……………ब्रह्मभूत प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति……………।

दोनों निरुतर हो गये।

श्रील प्रभुपाद जी ने हरिकथा ज़ारी रखते हुए कुछेक बातें उन्हें और समझायीं।

महापुरुष की बात सुनने का ऐसा असर हुआ कि दोनों वहीं रह गये, घर नहीं लौटे और उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान व उनके भक्तों की सेवा में समर्पित कर दिया।

ये दोनों आगे चलकर विश्व विख्यात संन्यासी हुए, जिनमें एक का नाम हुआ त्रिदण्डि स्वामी श्रीश्रीमद् भक्ति हृदय वन गोस्वामी महाराज व दूसरे त्रिदण्डि स्वामी श्रीश्रीमद् भक्ति सर्वस्व गिरी महाराज ।

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