यह तो सर्वविदित है कि देवलोक में जीव अपने पुण्य के फल के प्रभाव से ही जाता है। स्वर्ग में देवी-देवता रहते हैं।
उन्हीं देव-देवियों में ऐसे भी बहुत से होते हैं जिन्होंने मानव जन्म में बहुत सी सुकृतियाँ इकट्ठी की होती हैं। इसी के चलते वे साधु-संग का अधिकार भी प्राप्त कर लेते हैं। जैसे पृथ्वी पर भी सुकृतिशाली व्यक्ति ही साधुसंग कर पाता है।
भगवान के अवतरण की बात जानकर जब ब्रह्माजी ने देवताओं को पृथ्वी पर भगवान की लीला में सहयोग देने के लिये, जाने के लिये कहा तब केवल वे देव-देवी ही पृथ्वी पर आ पाये जिनके पास बहुत सी सुकृतियों का फल था। अतः सुकृतिशाली देव-देवी ही भक्तों का संग प्राप्त करने के पात्र बन पाये व श्रीनन्दनन्दन की लीला में प्रकट हुये।
वैसे भगवान विभिन्न प्रकार से कृपा करते हैं। उसी में से एक है -- अहैतुकी कृपा।
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