सोमवार, 3 दिसंबर 2018

जब जंगल से शेरों ने घेर लिया।

जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर 'प्रभुपाद' जी के शिष्य हैं श्रील भक्ति कुसुम श्रमण गोस्वामी महाराज जी।

बहुत समय पहले की बात है ---- 

आपके के एक शिष्य शिलिगुड़ी संग्रामपुर में रहते थे।  वे जहाँ पर नौकरी करते थे, वो स्थान उनके घर से काफी दूर था। कई बार तो उन्हें वहाँ जाने के लिए एक घने जंगल से होकर जाना पड़ता था।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि आफिस में काम की वजह से काफी देर हो गयी। अंधेरा होने लगा, मार्ग़ में जंगल है, ये जानते हुए भी वे शीघ्रता से घर की ओर चल दिये।


जैसे ही घने जंगल के बीचों-बीच पहुँचे तो शेरों की दहाड़ सुनकर ठिठके। इससे पहले की वे घर की ओर भागते, सामने ही शेर आ गये। शेरों ने उन्हें घेर सा लिया।

उनकी स्थिति ऐसी बनी कि कहाँ जायें, कहाँ भागें, हर ओर मौत ही मौत दिखाई देने लगी। शेर धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगे थे। शरीर से पसीना ऐसे बहने लगा, जैसे पानी। 

अत्यन्त भयावह स्थिति, किन्तु ना जाने कैसे उन्होंने संयम रखते हुये गुरुदेव को पुकारना शुरु कर दिया -- हे गुरुदेव रक्षा करो! हे गुरुदेव रक्षा करो! 

उनकी कातर प्रार्थना से उनके गुरुदेव अर्थात् श्रील भक्ति कुसुम श्रमण महाराज जी वहाँ प्रकट हो गये और उन्हें अभय प्रदान करते  हुये बोले -- भय की क्या बात है? तुम्हें कोई भय करने की, डरने की ज़रूरत नहीं है। हरिनाम करो और हरिनाम करते हुये चलना शुरु कर दो।
इतना कह कर वे अदृश्य हो गये।

इतने में उन शिष्य ने देखा कि शेरों ने दहाड़ना बन्द कर दिया था और पीछे हटना शुरु हो गये। 

श्री हरिनाम करते हुये, वे निर्भय घर चले आये।

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