सोमवार, 3 सितंबर 2018

भगवान श्रीकृष्ण का झूलन यात्रा महा-महोत्सव

सच्चाई यह है कि भगवान श्रीराधा-गोविंद जी की झूलन यात्रा में बद्ध जीव का कोई अधिकार ही नहीं है । तब भी हमारे गुरुवर्ग ने इसे शुरू किया है ।

वैसे इस समय हम वास्तव में श्रीलक्ष्मी-नारायण जी की पूजा कर रहे हैं, न कि श्रीराधा - कृष्ण जी की । *जहां एश्वर्य होता है ,वहां प्यार प्रतिबंधित हो जाता है*। 

हम श्रीराधा - कृष्ण जी की सेवा करने के अधिकारी ही नहीं है, क्योंकि हम उस ￰अवस्था तक नहीं पहुंच पाए हैं, जिसमें हमारा भगवान के साथ पूरी तरह से प्यार भरा सम्बन्ध हो । 

भगवान् के झूलन उत्सव में केवल गोपियों का ही अधिकार है । गोपियों का भगवान श्रीकृष्ण जी के प्रति प्यार अनुपम है ......इस दिव्य प्यार की सर्वोत्तम पराकाष्टा वाली भक्त हैं------- गोपियां। जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । श्रीकृष्ण के साथ पूरी तरह से गोपियाँ कैसे जुडी हुई हैं, ये हमारी कल्पना से भी परे है । झूलन उत्सव में केवल श्रीराधाजी-श्रीकृष्ण जी व गोपियाँ हैं | 
यहाँ तक कि नन्द महाराज ,यशोदा देवी व श्रीकृष्णजी के सखा और भगवान के साधारण सेवकों की तो वहाँ पर प्रवेश की अनुमति भी नहीं हैं। श्रीकृष्ण लीला में श्रीकृष्ण जी के सखा उनके सहायक हैं । ये सख्य रस अर्थात् ये मित्रता वाला संबंध वैकुण्ठ में भगवान नारायण के यहाँ भी है, लेकिन वह एश्वर्य तथा भय व संकोच के साथ है । परन्तु श्री कृष्ण जी के सखाओं के साथ ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है । वे तो श्रीकृष्ण के कन्धों पर चढ़ते हैं। यदि कोई कहे कि क्या ये भक्ति है ? वे तो अपने आराध्यदेव के कन्धों पर चढ़ते हैं .... हाँ , ये भक्ति है ..... क्योंकि उनकी श्रीकृष्ण जी से अति घनिष्टता है। वे तो साफ़ साफ़ कहते हैं ... ओ कृष्ण ! आप हमारे मित्र हैं और हम सब आपके बराबर ही हैं , बस इतना है कि आपके पास हमसे थोड़ी ज्यादा ताकत है......... आप ज्यादा ताकतवर हो इसलिए आपको ज़मीन पर रहना होगा और हम आपके कन्धों के ऊपर चढ़ेंगे ताकि हम पेड़ की ऊंचाई पर लगे फल तोड़ सकें .... . इस तरह 4--5 सखा एक के ऊपर एक करके श्री कृष्ण जी के कन्धों पर चढ़ जाते हैं और श्रीकृष्ण सबसे नीचे ज़मीन पर सबका भार लिये खड़े रहते हैं........इतना ही नहीं .....उन्होंने श्रीकृष्ण के लिए
एक फल तोड़ा फिर उसे चखा कि ये सचमुच मीठा ही है ना...... कहीं ये कड़वा या खट्टा तो नहीं । आह !! ये तो बहुत मीठा है !! इसे कृष्ण को दे --- ऐसा कहकर उसने वह फल अगले मित्र को दे दिया। अगला सखा भी स्वाद चखना चाहता है कि ये सच है या झूठ। इस तरह चार या पांच सखा फल का स्वाद लेते हैं और फिर कृष्ण को देते हैं जो इसे बहुत ही संतुष्टि से खाने लगते हैं। 

दुनियावी भूमिका में आप भला इसे कैसे समझ सकते हैं , इस अप्राकृत प्रेम को ? इतना होने पर भी झूलन समारोह में सखाओं को जाने की अनुमति नहीं है। यही नहीं नन्द महाराज जी का श्रीकृष्ण के लिए स्नेह सखाओं की तुलना में बहुत अधिक है परंतु उनके पास भी श्री राधा गोविंद जी की झूलन यात्रा में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है।
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भक्ति रत्नाकर नामक ग्रंथ में श्रीनरहरि चक्रवर्ती जी ने लिखा है कि झूलन यात्रा काम्यवन में की जाती है, जो ब्रज मंडल के 12 वनों में से एक है । 

दक्षिण भारत के इन गोस्वामी जी ने गोवर्धन में भजन किया था । उस समय उन्होंने पूरे वृजमंडल में भ्रमण करवाकर श्रीराधा कृष्णजी की लीला स्थलियों को श्रीनिवास आचार्य और नरोत्तम ठाकुर जी को दिखाया था । जब वे काम्यवन आये तो उन्होंने उन्हें उस कदम्ब के पेड़ की वो शाखा भी दिखाई , जहां झूला झूलते हुए श्रीराधाजी, श्रीकृष्णजी और सभी सखियाँ अथाह आनंद में डूब जाती हैं । वैसे तो श्रीराधा-कृष्ण जी ने पूरा पूरा साल वहां कई लीलाएं कीं। परन्तु यह झूलन लीला वहाँ श्रावण महीने में होती है। *राधाकुंड में झूलन का कार्यक्रम गोपियों द्वारा प्रतिदिन किया जाता है ।* हम कार्तिक मास में दोपहर के समय राधा कृष्ण के इस झूलन उत्सव की लीलाओं का स्मरण करते हैं । इसे दोला-खेला कहा जाता है । हम इस पूजा को, इस उत्सव को अर्चन मार्ग के अनुसार 5 दिनों के लिए कर सकते हैं । 

हमारे गुरुवर्ग कहते हैं कि भगवान की इस नित्य सेवा को प्राप्त करने के लिये हम प्रार्थना के साथ-साथ वैष्णवों के साथ संकीर्तन करके उस लीला में प्रवेश मिल सकता है । जब तक हममें भौतिक अहंकार है , तब तक
कोई भी सम्भावना नहीं है .....लेकिन हमें निराश भी नहीं होना चाहिए क्योंकि श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने कहा, *"नाम संकीर्तन कलौ परम उपाय"*। श्रीमहाप्रभुजी कहते हैं कि मैंने राधाकृष्ण संकीर्तन ........ महामंत्र.... आपको दे दिया है , निष्ठा से वो करो । सब कुछ हरिनाम में ही है। 

दस नाम-अपराधों को किये बिना हरिनाम करो *"महामंत्र"* करके हम धीरे-धीरे विधि मार्ग से निकल कर राग मार्ग में आ जाएंगे । हरिनाम करें और शुद्ध भक्तों की संगति करें और उनसेे हरिकथा सुनें । धीरे -धीरे सब ठीक हो जायेगा । आप इसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकते । 
पहले हमें हरिनाम करना होगा फिर जब हमारा अन्त:करण शुद्ध होगा फिर ये हरिनाम हमारे हृदय में प्रकट होगा । इसी तरह फिर हृदय में भगवान का रूप प्रकट होगा । यदि आप सही हरिनाम करते रहते हैं तो फिर भगवान के अन्य दिव्य गुण भी अन्त:करण में प्रकट होंगे । फिर उसके नित्य परिकर प्रकट होंगे। 

*भगवान श्रीकृष्ण, राधारानी व सभी गोपियों के शरीर नित्य हैं व दिव्य हैं। इस कलियुग में हरिनाम की साधना को अत्यधिक महत्त्व देना होगा,
तभी आपकी भूमिका दिव्य होगी और आप भगवान की दिव्य लीला देख पाओगे तथा उनकी इन सब दिव्य लीलाओं में प्रवेश कर पाओगे। हरिनाम के इलावा आप भक्ति के दूसरे दूसरे अंगों की साधना भी कर सकते हैं ।लेकिन साधना में सरलता होनी बहुत जरूरी है। *आप अपने समय को व्यर्थ किये बिना , दृढ विश्वास के साथ आप हरिनाम करते जाएँ , इससे आपका जीवन सफल हो जायेगा*।

---- श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी।

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