शनिवार, 1 सितंबर 2018

जब मदनमोहन जी, ने आपके जाने की व्यवस्था की

ज़गद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के दीक्षित शिष्य थे श्रीकृष्णचन्द्र बन्दोपाध्याय। दीक्षा के बाद आपका नाम हुआ श्रीकृष्णानन्द दासाधिकारी।

आपने श्रील भक्ति विकाश हृषिकेश महाराजजी से त्रिदण्ड संन्यास ग्रहण कर नाम प्राप्त किया ------ श्रील भक्ति स्वरूप कृष्णानन्द महारज।

संन्यास के बाद आप पूर्व बंग (वर्तमान में बंगलादेश)  आदि विभिन्न स्थानों पर श्रीहरिनाम का प्रचार करने लगे। एक बार आप जयपुर से श्रीश्रीगौरांग राधा मदनमोहन जी के श्रीविग्रह विमान से ढाका में ले आये, व अस्थायी रूप से एक कमरे में विराजित करके बड़े ही भक्ति-भाव तथा प्रेम-पूर्वक उनकी सेवा करते रहे।

दो वर्ष के बाद श्रीश्रीराधा मदनमोहन जी ने आपसे कहा -- मैं यहाँ नहीं रहूँगा। मुझे शीघ्र भारत ले चलो।

आपने कहा -- ये क्या बात हुई? कितना रूपया खर्च करके आपको मैं यहाँ
लाया हूँ। अब आप पुनः भारत जाना चाहते हैं!  अब इतना रूपया कहाँ से इतनी जल्दी इकट्ठा किया जाये कि आप विमान से भारत जा सकें?

भगवान श्रीराधा-मदनमोहन जी ने कोई जवाब नहीं दिया।

अगले दिन सुबह 10 बजे एक व्यक्ति आया और उसने आपसे कहा -- महाराज! ठाकुर को लेकर शीघ्र ही उस पार चले जाइये। क्योंकि देश की खबर अच्छी नहीं है। अधिक देर न करके आप शीघ्र चलिये। 

आपने कहा -- आप भी मुझे जाने के लिए कह रहे हैं, किन्तु मैं जाऊँ कैसे? अभी न कोई व्यवस्था है न ही रूपया-पैसा। 
उस व्यक्ति ने कहा -- आपको इसकी चिन्ता की ज़रूरत नहीं है। मैं आपके लिए दो टिकट लाया हूँ विमान के, आप बस जाने के लिए सामान बाँध लीजिए। 

यह सुनकर आपको बहुत आश्चर्य हुआ।

आप ने इसे भगवान श्रीश्रीराधा-मदनमोहन की व्यवस्था समझकर हामी भर दी।

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