सोमवार, 17 सितंबर 2018

जब श्रीमती राधारानी ने एक स्थान का निर्माण किया

श्रीअनन्त संहिता में ऐसा वर्णन मिलता है कि एक बार श्रीमती पार्वती देवी जी के जिज्ञासा करने पर श्रीमहादेव जी ने कहा -- एक समय की बात है कि श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ बातचीत कर रहे थे। किसी अन्य सखी ने जब श्रीराधा जी को श्रीकृष्ण के छिपने के स्थान के बारे में बताया तो श्रीराधा जी वहाँ आ गयीं।  जब श्रीमती राधाजी वहाँ  गयीं तो श्रीकृष्ण राधारानी के आगमन का समाचार पाकर अन्तर्हित हो गये।  विरजा नदी में परिवर्तित हो गयी।

श्रीराधिकाजी ने वहाँ श्रीकृष्ण को ढूँढा किन्तु श्रीकृष्ण नहीं मिले। 

श्रीकृष्ण-परायणा देवी, तब मन ही मन, इस विषय में चिन्ता करती हुई, अपनी सखियों के साथ गंगा और यमुना के मध्य-भाग में आ गयीं।

वहाँ श्रीमती राधा रानी ने अपने प्रभाव से वृक्षलताओं से घिरा हुआ, विविध-कुँजों से शोभायमान व नित्य बसन्त-विराजित एक बड़े स्थान का निर्माण किया तथा उस जगह पर नयी तरह के वस्त्र व आभूषणों से विभूषित होकर, वेणु के सहयोग से, श्रीकृष्ण का मनोहारी सुमधुर गान करने लगीं।

राधानाथ भगवान श्रीकृष्ण उन गान से मोहित होकर खिंचे चले आये।श्रीकृष्ण ने राधारानी का भाव देखकर प्रेम में गद्गद स्वर से कहा --

हे सुमुखि! तुम मेरी प्राणतुल्या हो, तुमे जैसी और कोई मेरी प्रिया नहीं है, अतएव तुमको मैं क्षणकाल के लिये भी परित्याग नहीं करूँगा। तुमने मेरे लिये ये जो स्थान बनाया है, यह बढ़िया स्थान है, मैं तुम्हारे साथ रहकर नवसखी एवं नवकुंजयुक्त इस स्थान को नवरूप में परिणत करूँगा। मेरे
भक्तगणों में यह स्थान नव-वृन्दावन के नाम से प्रसिद्ध होगा। यह, स्थान द्वीप की तरह होने के कारण नवद्वीप कहलायेगा। मेरी आज्ञा से, इस स्थान पर सभी तीर्थ वास करेंगे। हे वरानने! क्योंकि तुमने मेरी प्रीति के लिये, इस स्थान का निर्माण किया है, इसलिये मैं तुम्हारे साथ इस स्थान पर नित्य वास करूँगा। इस स्थान पर आकर जो व्यक्ति तुम्हारे सहित मेरी उपासना करेंगे, उन्हें निश्चय ही हमारा नित्य-सखीभाव प्राप्त होगा। हे प्रिये! ये स्थान वृन्दावधाम की तरह श्रेष्ठ होगा। इस स्थान पर एक बार आने मात्र से व्यक्ति को सभी तीर्थों में जाने का फल लाभ होता है एवं शीघ्र ही हमारी सन्तोषदायिनी-भक्ति लाभ होती है।

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