जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के शिष्य थे श्री प्रणवानन्द ब्रह्मचारी। श्रील प्रभुपाद के प्रकट काल में आपको संन्यास देने के लिये 2-3 बार आयोजन हुआ, किन्तु मठ की विशेष सेवा में रहने का कारण, आपका संन्यास नहीं हो पाया।
श्रील प्रभुपाद जी ने अप्रकट लीला के बाद आपको, दो बार स्वप्न में आकर संन्यास लेने के लिये आदेश दिया। जब यह सम्भव नहीं हो पाया तो श्रील प्रभुपाद एक दिन आपके शयन कक्ष में साक्षात् प्रकट हो गये और कहा -- बार-बार संन्यास की चेष्टा होने पर भी संन्यास नहीं हो रहा है ! मेरी इच्छा है कि आप संन्यास लेकर श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की कथा तथा वाणी का
प्रचार करें। अतः आज मैं आपको संन्यास दूँगा।
इतना कहकर उन्होंने आपको दिव्य संन्यास मन्त्र सहित त्रिदण्ड संन्यास प्रदान करके अन्तर्धान हो गये।
आपकी बात सुनकर सभी गुरू-भाई हैरान हो गये। फिर भी लौकिक दृष्टि से आपने 1943 में परम पवित्र श्रीगौर पूर्णिमा तिथि के दिन अपने गुरू भाई श्रीमद् भक्ति गौरव वैखानस गोस्वामी महाराज से संन्यास ग्रहण किया।
संन्यास के बाद आपका नाम हुआ -- श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज।
श्रील प्रभुपाद जी ने अप्रकट लीला के बाद आपको, दो बार स्वप्न में आकर संन्यास लेने के लिये आदेश दिया। जब यह सम्भव नहीं हो पाया तो श्रील प्रभुपाद एक दिन आपके शयन कक्ष में साक्षात् प्रकट हो गये और कहा -- बार-बार संन्यास की चेष्टा होने पर भी संन्यास नहीं हो रहा है ! मेरी इच्छा है कि आप संन्यास लेकर श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की कथा तथा वाणी का
प्रचार करें। अतः आज मैं आपको संन्यास दूँगा।
इतना कहकर उन्होंने आपको दिव्य संन्यास मन्त्र सहित त्रिदण्ड संन्यास प्रदान करके अन्तर्धान हो गये।
आपकी बात सुनकर सभी गुरू-भाई हैरान हो गये। फिर भी लौकिक दृष्टि से आपने 1943 में परम पवित्र श्रीगौर पूर्णिमा तिथि के दिन अपने गुरू भाई श्रीमद् भक्ति गौरव वैखानस गोस्वामी महाराज से संन्यास ग्रहण किया।
संन्यास के बाद आपका नाम हुआ -- श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज।
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