शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

भगवान, किस समय, किस रंग का का अवतार लेते हैं?

एक बार राजा निमिजी ने नौ-योगेन्द्रों को पूछा -- हे योगीश्वरो! आप लोग कृपा करके यह बतलाइये कि भगवान, किस समय, किस रंग का अवतार स्वीकार करते हैं और किन नामों से वे जाने जाते हैं तथा किन विधियों से, मनुष्य उनकी उपासना करते हैं?

प्रश्न के उत्तर में श्रीकरभाजन ॠषि ने कहा --

इति द्वापर उर्वीश स्तुवन्ति जगदीश्वरम्।
नानातंत्रविधानेन कलावपि तथा श्रृणु ॥
कृष्णवर्णंं त्विषाऽकृष्णं सांगोपांगस्त्रपार्षदम् ।
यज्ञैः संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः॥
(श्रीमद् भागवत महापुराण 11/5/31-32)
अर्थात् नौ योगेन्द्रों में से श्रीकरभाजन जी कहते हैं कि उपर्युक्त प्रकार से द्वापर युग के लोग, जगदीश्वर को तन्त्र शास्त्र में दिये गये विभिन्न विधानों के अनुसार स्तुति करते थे।  अब वे जगदीश्वर ही, कलियुग में अवतीर्ण होने पर, जिस प्रकार नाना तन्त्रों के विधानों के द्वारा पूजित होते हैं, उसे बतला रहा हूँ, श्रवण करो।

जो, 'कृष् + ण' ----- इन दो वर्णों का कीर्तन करते हैं, अथवा सभी को श्रीकृष्ण नाम करने का उपदेश करते हैं या 'कृष्ण' इन दोनों वर्णों के कीर्तन के द्वारा कृष्णानुसन्धान में सर्वदा तत्पर रहते हैं; जिनके अंग ---- श्रीनित्यानन्द प्रभु और श्रीअद्वैत प्रभु हैं, जिनके उपांग --- उनके ही आश्रित श्रीवासादि शुद्ध-भक्त हैं तथा जिनका अस्त्र ---- हरिनाम शब्द है
और जिनके पार्षद ---- श्री गदाधर, श्रीदामोदर स्वरूप, श्रीरामानन्द, श्रीरूप-श्रीसनातन आदि हैं; जो कान्ति से अकृष्ण अर्थात् पीत (गौर) हैं; उन्हीं बर्हिगौर राधाभावद्युति सुवलित श्रीगौरसुन्दर की कलियुग में सुमेधागण (बुद्धिमान लोग) संकीर्तनरूपी प्रधान यज्ञ के द्वारा आराधना करते हैं।

नाम संकीर्तन इस कलियुग का प्रधान धर्म है। इसको युगावतार ही प्रकाश कर सक्ते है<। इसलिये साक्षात् श्रीकृष्ण ही श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के रूप से श्रीनव्द्वीप धाम में अवतीर्ण हुए थे।

आसन् वर्णास्त्रयो ह्यस्य गृह्न्तोऽनुयुगंं तनुः।
शुक्लो रक्तस्तथा पीत इदानीं कृष्णातां गतः॥ 
(श्रीमद् भागवत महापुराण 10/8/13)
श्रीकृष्णचन्द्रजी के नामकरण के समय में, श्रीनन्द महाराजजी से श्रीगर्गाचार्यजी कहते हैं -- यह, तुम्हारा साँवला पुत्र, प्रत्येक युग में ही आता है अउर अलग-अलग श्रीविग्रह धारण करता है। सत्ययुग में इसका वर्ण श्वेत था, त्रेता में रक्त्वर्ण था, कलि में पीत्वर्ण था और अब द्वापर में श्यामवर्ण है। चूँकि इस युग में इसका वर्ण श्याम है, इसलिए इसका नाम कृष्ण होगा।

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