शनिवार, 11 अगस्त 2018

श्रील भक्ति रक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज

आपका प्राकट्य 1895 एस वर्द्धमान ज़िला के हाँपानिया गाँव में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री उपेन्द्र चन्द्र भट्टाचार्य विद्यारत्न एवं माताजी का नाम श्रीमती गौरीदेवी था।

जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी ने आपको दीक्षा देकर नाम दिया------ श्रीपाद रामानन्द ब्रह्मचारी।

1930 में आपका संन्यास हुआ व नाम हुआ ------श्रीमद् भक्ति रक्षक श्रीधर देव गोस्वामी महाराज।

श्रील प्रभुपाद कहा करते थे कि श्रीधर महाराज के समान शिक्षित व्यक्ति ने श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के मिशन में योगदान दिया है, अतः इससे और सुखकर विषय क्या हो सकता है?

आपने समस्त भारवर्ष में श्रीमहाप्रभु की वाणी का बहुत प्रचार किया। आप स्वाभाविक रूप से अंग्रेज़ी, हिन्दी, बंगला एवं संस्कृत भाषा में भाषण देने कि योग्यता रखते थे।

बिहार गिरिड में बैरिस्टर की लाईब्रेरी में एक सभा में एक विशेष शिक्षित व्यक्ति श्री वसाक , सभापति के रूप से विराजित थे। वहाँ आपका भाषण सुनकर सभापति महोदय ने मन्तव्य प्रकाश किया कि -----

हम सबको इतने दिन तक पता था कि वैष्णव धर्म हिन्दुधर्म का ही एक अंश व शाखा है। किन्तु आज हम सबको पूर्ण रूप से पता चला है कि यह ठीक नहीं है। वैष्णव धर्म ही जैव (जीव) का धर्म है व प्रत्येक आत्मा का नित्य धर्म है और सभी धर्म इसी वैष्णव धर्म के ही अंश हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें