सोमवार, 2 अप्रैल 2018

संसार में सबसे सुखी कौन?


महाभारत में एक प्रसंग आता है, कि एक बार पाँच पाण्डव वन में भटक गये। भटकते-भटकते उन्हें प्यास लगी। ज्यादा थकावट के कारण सभी एक स्थान पर बैठ गये।

युधिष्ठिर महाराजजी ने पहले नकुल, फिर सहदेव, फिर अर्जुन और अन्त में भीम को भेजा जल की खोज में। जब काफी समय हो गया, कोई नहीं लौटा तब युधिष्ठिर महाराज चिन्तित हुये व स्वयं जल व भाईयों की खोज में निकले। कुछ दूर जाने पर एक सरोवर दिखा व समीप ही अपने भाईयों को मृत पड़े देखा। अपने चारों भाईयों की ऐसी अवस्था देखकर बहुत हैरान हुये व सोचने लगे कि घाव का कोई चिन्ह भी नहीं, तो भी मेरे बलशाली, शूरवीर भाई मृत कैसे? 

धैर्य नहीं खोया! जल की प्यास सताई तो समीप के सरोवर से पानी पीने के लिये उठे। स्वच्छ जल जैसे ही अँजुली में भरा तभी एक ध्वनि हुई,'आप ऐसे जल नहीं पी सकते। जल पीने से पहले आपको मेरे प्रश्नों का उत्तर देना होगा अन्यथा आपकी भी वही हालत होगी जो आपके भाईयों की हुई है।'

युधिष्ठिर महाराज ने सिर उठा कर देख कि एक बगुला प्रश्नों के बारे में 
कह रहा है। युधिष्ठिर महाराज ने कहा,'एक बगुला मेरे भाईयों को मार सकता है, ऐसा मैं विश्वास नहीं कर सकता। आप कौन हैं? अपने वास्तविक रूप में आयें।' तब बगुले ने यक्ष का रूप धारण कर लिया और कई प्रश्न किये। बहुत महत्व्पूर्ण प्रश्न हैं, वे सभी। उन्हीं में एक प्रश्न था कि संसार में सबसे सुखी कौन है?
युधिष्ठिर महाराज जी ने उत्तर दिया कि संसार में सबसे सुखी व्यक्ति वह है जो अॠणी है, अर्थात् जिस पर कोई ॠण नहीं है। 

यहाँ पर युधिष्ठिर महाराज केवल धन की बात नहीं कर रहे हैं, उनका कहने का तात्पर्य है समस्त प्रकार के ॠण।

आज के जगत् में आम धारणा हो गयी है धन का ॠण लेने की। कोई होम लोन (Home Loan) ले रहा है तो कोई बिस्नस लोन (Business loan), कोइ पर्सनल लोन (Personal loan) ले रहा है तो कोई पढ़ाई के लिये ॠण (Study loan) ले रहा है। अब तो रोज़मर्रा की वस्तुयें भी उधार मिलने लगी हैं। 
थोड़ा सा अगर हम ध्यान दें तो जब हम पर महीने के प्रारम्भ में किसी मासिक किश्त को उतारने का बोझ आ जाता है तो हमें एक तरह से चिंता लग जाती है। हमारे ही देश में कुछ समय पहले कृषि उत्पादकों ने इसी ॠण की परेशानी में आत्मदाह तक कर लिया था। अभी तक तो हम केवल धन के ॠण के कारण ही चिन्तित हैं, अन्य ॠण का तो हमें ध्यान ही नहीं है।

हमारे शास्त्र हमें बताते हैं कि सभी मनुष्य पाँच प्रकार के ॠण से ग्रस्त हैं। वे हैं ॠषि ॠण, देव ॠण, माता-पिता का ॠण, अन्य प्राणियों का ॠण तथा राजा का ॠण्। ॠषियों ने हमें ज्ञान दिया, देवता हमें वर्षा-धूप-अनाज, इत्यादि देते हैं, माता-पिता हमें बचपन से प्रारम्भ कर सभी कुछ सिखाते हैं, प्राणी मात्र के कारण हमें कपास, अनाज, बने-बनाये मकान, मोटर कार, जहाज, इत्यादि मिलते हैं। राजा अपनी प्रजा का अपने पुत्रों की तरह पालन करता है, सुरक्षा प्रदान करता है, आदि । अतः हम सब इनके ॠणी हैं।

बैंक की किश्त अगर कुछ महीने ना चुकाओ तो वे ॠण (लोन) देना तो बंद करते ही हैं, साथ ही साथ वह वस्तु भी हमसे छीन लेते हैं। उपरोक्त पाँच प्रकार के ॠण देने वालों में से कोई एक भी अगर ॠण देना बंद कर दे तो सोचिये हमारी क्या अवस्था होगी? धन के ॠण के बिना तो हम जीवन निकाल ही लेंगे परन्तु अनाज, हवा, पानी, इत्यादि के बिना तो हम जी ही नहीं पायेंगे। 

सोचिये तो कितना उपकार है इन सबका हम पर।
कोई भी जगत् का व्यक्ति अपकारी अथवा एहसान-फरामोश नहीं कहलवाना चाहता। अब यह जो पाँच प्रकार के ॠण हैं, इनको चुकाये बगैर तो हम सुखी नहीं हो सकते। राजा का ॠण तो हम टैक्स, इत्यादि देकर चुका देते हैं, परन्तु बाकी तो देते ही नहीं। फिर मजे की बात यह है कि कोई व्यक्ति दुःख नहीं चाहता बल्कि सुख ही चाहता है। अब जब ॠण चुकाये बगैर कोई सुखी नहीं हो सकता तो इसका कोई उपाय तो होगा?

हमारे शास्त्र इसकी युक्ति बताते हैं। वह है भगवान की शरण। भगवान की शरण लेने से वे हमें समस्त प्रकार के ॠणों से मुक्त कर देते हैं। सारी सृष्टि के मूल में भगवान हैं। जैसे किसी पौधे के मूल अथवा जड़ में जल देने से उसके पत्ते, टहनी, इत्यादि सबको जल मिल जाता है। केवल पत्ते या टहनी को जल देते रहने से समस्त वृक्ष को जल नहीं मिलता। उसी प्रकार एक-एक ॠण उतारने से सभी ॠण चुकते नहीं हो सकते। बेहतर है कि हम सभी ॠण देने वालों के मूल में जो हैंं अर्थात् सभी के जो स्रोत हैं, श्रीकृष्ण, उनकी शरण में जायें। भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाने से ही हम सुखी हो सकते हैं।

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