रविवार, 3 दिसंबर 2017

आधी रोटी से ही राजा परास्त

संसारी लोग प्रतिष्ठा के इतने लालची होते हैं कि यदि वे देश, समाज व भगवान की सेवा के लिए कुछ करते हैं तो समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में अपना नाम प्रकाशित करवाकर वा दीवारों पर अपने नाम का पत्थर लिखवाकर अपनी वाही-वाही अवश्य चाहते हैं, परन्तु उदार हृदय महापुरुषों की धारणा इसके बिल्कुल विपरीत होती है।

जैसे --------

दो सन्त संसार की चकाचौंध से एकदम मुँह मोड़कर भगवान को स्मरण करते हुए एकान्त वन में रहते हुए भजन करते थे। 
थोड़े ही दिनों में इनके तप, त्याग व वैराग्य से आकृष्ट होकर तत्कालीन राजा इनके दर्शनार्थ आये। राजा के पहुँचने से पहले ही किसी ने सन्तों को जना दिया कि राजा साहब आपके दर्शनों के लिये आ रहे हैंं।

सन्तों ने विचार किया कि अब तक तो साधारण लोगों क आने-जाने से ही प्रसिद्धि हुई थी। यदि कहीं राजा के आगमन की बात चारों ओर फैलेगी तो लोग और भी अधिक आने-जाने लगेंगे और भजन में बाधा होगी। 

अतः दोनों सन्त आपस में सलाह कर लोक-मान्यता से बचने के लिये ,
जब राजा कुटिया से कुछ दूरी पर था तो उसे देखकर एवं उसे दिखाते हुए आपस में झगड़ने लगे। 

झगड़ा किसी और बात का नहीं, रोटियों का था। आधी रोटी को लेकर दोनों लड़ रहे थे, कि इसे मैं लूँगा। राजा दूर खड़े होकर इनका तमाशा देखने लगा।

फिर राजा ने सोचा कि - जब वे आधी रोटी के लिए इतना कलह कर रहे हैं तो भला -- ये काहे के सिद्ध, काहे के प्रसिद्ध। अरे, लोगों ने झूठी प्रशंसा फैला रखी है। ये तो कोई भुक्खड़ मालूम पड़ते  हैंं। 
बस दूर से ही राजा इन लोगों को देख कर लौट गया। 

राजा को लौटता देख सन्तों ने झगड़ा बन्द कर दिया और बोले  - देखो, केवल आधी रोटी से ही राजा को हमने भगा दिया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें