गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

भक्त भगवान की सेवा करते हैं, भगवान से अपनी सेवा नहीं कराते।

माघ का महीना था, एक दिन अचानक जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी की इच्छा हुई की भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी को आम का भोग लगाया जाये।

श्रील प्रभुपाद तुरन्त खेद करने लगे कि शायद मेरे अन्दर आम खाने की इच्छा थी, इसलिये मेरी ऐसी इच्छा हुई। ऐसा सोच कर आप बहुत दुःखी हुये। बंगाल में मायापुर, जहाँ पर आप रह रहे थे, शहर से काफी दूर है। माघ के महीने में आम नहीं मिलते। हाँ, बड़े-बड़े शहरों में बड़ी मुश्किल से कदाचित आम पाये जा सकते थे। श्रील प्रभुपाद जी ने अपने मन की बात किसी से न कही।

थोड़ी देर बाद श्रील प्रभुपाद जी के नाम एक पार्सल आया। जब उसे खोला गया तो उसमें में बड़े सुन्दर - सुन्दर आम निकले। सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। श्रील प्रभुपाद की आँखें भर आयीं।

आप ने रोते-रोते कहा - हे मेरे प्रभु! मैंने आपको कष्ट दिया। आपने इस समय में भी न जाने कहाँ से आम भेज दिये हैं। 

आपने उसी समय मन्दिर के पुजारी को आम दे दिये और भोग लगाने को कहा।

भोग लगने के बाद, आम का प्रसाद सबको बाँटा गया।
उस दिन से श्रील प्रभुपाद जी ने आम न खाने का संकल्प लिया और जीवन भर आम नहीं खाये। श्रील प्रभुपाद जी की ऐसी भावना हुई कि इन आमों के लिये मेरे प्रभु को कष्ट उठाना पड़ा।

भक्त भगवान की सेवा करते हैं, भगवान से अपनी सेवा नहीं कराते।

आत्मेन्द्रिय प्रीतिवाञ्छा तारे बलि काम।
कृष्णेन्द्रिय प्रीति-इच्छा धरे प्रेम नाम॥

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