सोमवार, 23 जनवरी 2017

सबको अपना महसूस करना ही आत्मोन्नति की पहचान है।

यह तो सभी मनते हैं कि संसार के सभी प्राणियों का कारण एकमात्र भगवान हैं। कोई उन्हें भगवान कहे, तो कोई प्रकृति, कोई अल्लाह कहे तो कोई कहे ब्रह्म। किन्तु एक तथ्य यह भी है कि सभी के कारण वे हैं, अतः इसी नाते से हम सब का आपस में सम्बन्ध है। जो लोग कहते हैं कि यह व्यक्ति मेरा अपना है, वह पराया, वे उन्नत अवस्था कि स्थिती में नहीं है। यह भेद-भाव है। इसी अपने-पराये की भावना के कारण दुनियाँ में हिंसा, आपसी तनाव, मन-मुटाव, अपराध, इत्यादि का प्रचलन होता जा रहा है।

सभी के मन में चाह होती है कि सब ओर शान्ति हो, कहीं कोई डर न हो। निश्चिन्त होकर खुशहाल जीवन जीयें। अब इसके लिये तो आपसी प्रेम होना ज़रूरी है।
श्रीचैतन्यदेव जी ने सभी मनुष्यों में एकता की स्थापना करने के लिये, उनमें आपसी प्रेम की भावना लाने के लिये, सन्देश दिया कि हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वो ये जाने कि उसके समेत सभी मनुष्य भगवान से आये हैं। साथ ही साथ यह भी जानना आवश्यक है कि 'मैं कौन हूँ?', 'यह दूसरे-दूसरे मनुष्य कौन हैं?', 'मेरा इन अन्य मनुष्यों से क्या सम्बन्ध है?'

इसके उत्तर में श्रीचैतन्यदेव जी का कहना है कि मनुष्य का दूसरे सभी प्राणियों से सम्बन्ध है, भगवान को लेकर। यह सन्देश सभी प्राणियों के लिये है। जब इस सम्बन्ध का ज्ञान हो जायेगा तो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य
के प्रति, एक मनुष्य दूसरे प्राणी के प्रति हिंसा नहीं करेगा। आपसी मन-मुटाव घटेगा। जब हम एक-दूसरे को अपना सगा, अपना प्रिय, अपना भाई-बहिन जानेंगे तो उनके प्रति ईर्ष्या, आदि घटेगा व प्रेम बढ़ेगा। इससे शान्ति व एकता स्थापित करने की सम्भावना बढ़ेगी। इसके साथ ही साथ यह भी समझ लेना चाहिये कि  to every action there is equal and opposite reaction.

यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि प्रत्येक क्रिया की समजातीय प्रतिक्रिया होती है। इसीलिए शास्त्र का आदेश है कि किसी भी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिये। जीव-हिंसा से कोई फायदा नहीं होता। दूसरे प्राणियों की हिंसा करने से अभी शायद कुछ फायदा नज़र आये किन्तु अन्त में पछताना ही पड़ता है। 

One has to pay with compound interest. Not with simple interest
but with compound interest.

इसीलिये वेद-शास्त्र कहते हैं, 

मां हिंसात् सर्वानि भुतानि………………………

हिंसा से बचने का एकमात्र उपाय है--- आपसी सम्बन्ध का ज्ञान।

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