एक बार दुर्वासा मुनि श्रीमती राधा रानी के पिताजी राजा वृषभानुजी के यहाँ आये। उन्होंने मुनि की खूब आवभगत की। दुर्वासा जी द्वारा भोजन करने की इच्छा करने पर वृषभानु महाराज ने अपनी पुत्री को मुनि के लिये भोजन बनाने के लिये कहा। दुर्वासा मुनि भोजन पाकर बहुत खुश हुए और स्वादिष्ट भोजन की बहुत तारीफ करने लगे।

यशोदा मैय्या को जब इस बाता का पता चला तो वे बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने राधाजी के लिये बुलावा भेजा। श्रीवृषभानु जी व नन्द बाबा की गहरी दोस्ती थी, अतः यशोदा माता की आज्ञा पालन करने के लिये राधाजी पहुँच गयीं, नन्द बाबा के घर, अपनी सखियों के साथा। यशोदा माता तो वात्सल्य भाव की भक्त, वे परब्रहम भगवान श्रीकृष्ण को बालक ही समझती हैं। उनकी भावना थी की मेरे बालक की लम्बी उम्र हो। यही सोचकर बड़े स्नेह के साथ उन्होंने राधाजी से कहा -- मेरे लाल के लिये, प्रतिदिन सुबह का भोजन आप ही पकायेंगीं।
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