शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

जब यशोदा माता ने राधाजी को श्रीकृष्ण के लिए भोजन पकाने को कहा

एक बार दुर्वासा मुनि श्रीमती राधा रानी के पिताजी राजा वृषभानुजी के यहाँ आये। उन्होंने मुनि की खूब आवभगत की। दुर्वासा जी द्वारा भोजन करने की इच्छा करने पर वृषभानु महाराज ने अपनी पुत्री को मुनि के लिये भोजन बनाने के लिये कहा।  दुर्वासा मुनि भोजन पाकर बहुत खुश हुए और स्वादिष्ट भोजन की बहुत तारीफ करने लगे।

जब उन्हें पता चला की यह सब श्रीवृषभानु राजा की पुत्री श्रीमती राधा ने बनाया है तो उन्होंने राधाजी को अपने पास बुलाया और आशीर्वाद देते हुये वृषभानु महाराज को बोले -- जो भी इसके हाथ का बना भोजन खायेगा, उसकी लम्बी उम्र होगी।

यशोदा मैय्या को जब इस बाता का पता चला तो वे बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने राधाजी के लिये बुलावा भेजा। श्रीवृषभानु जी व नन्द बाबा की गहरी दोस्ती थी, अतः यशोदा माता की आज्ञा पालन करने के लिये राधाजी पहुँच गयीं, नन्द बाबा के घर, अपनी सखियों के साथा। यशोदा माता तो वात्सल्य भाव की भक्त, वे परब्रहम भगवान श्रीकृष्ण को बालक ही समझती हैं। उनकी भावना थी की मेरे बालक की लम्बी उम्र हो। यही सोचकर बड़े स्नेह के साथ उन्होंने राधाजी से कहा -- मेरे लाल के लिये, प्रतिदिन सुबह का भोजन आप ही पकायेंगीं।
राधाजी भगवान श्रीकृष्ण की यह सेवा पाकर अति प्रसन्न हुईंं। वे प्रतिदिन अपनी सखियों के साथ नन्द-भवन में आकर भगवान के लिये रसोई बनातीं। 
परमपूज्यपाद श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराजजी ने एक बार अपने निजि सेवक को बताया कि नन्द भवन में राधाजी जब प्रातःकालीन रसोई बनाती हैं, उससे पहले सारे बर्तनों को पानी से धोना तथा कपड़े से सुखाकर ललिता-विशाखा आदि सखियों को देना, यह गोलोक-धाम में उनकी नित्य सेवा है।

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