बुधवार, 21 सितंबर 2016

गुरु की आवश्यक्ता

कुछ लोगों का ऐसा विचार है कि गुरु की ज़रूरत ही नहीं है। उनके अनुसार भगवान ही एकमात्र गुरु हैं।

किन्तु यह विचार युक्ति संगत एवं शास्त्र सम्मत नहीं है।
ऐसा देखा जाता है कि दुनियाँ की प्रत्यक्ष वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी हम किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय लेते हैं जो उसके बारे में अच्छी तरह जानता है। 
वैसे भी दुनियाँ के सभी क्षेत्रों में हम गुरु बनाते हैं परन्तु प्रकृति के अतीत जो, भगवद ज्ञान है, उसे प्राप्त करने के लिए गुरु की कोई आवश्यक्ता नहीं, ऐसा कहना बिल्कुल ही बुद्धिहीन व्यक्ति की बकवास मात्र है। सच तो यह है कि जो कहते हैं कि भगवद् ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की कोई आवश्यकता नहीं है उन्हें भगवद् प्राप्ति की कोई चाह ही नहीं है।

छान्दोग्य उपनिषद में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आचार्यवान् पुरुषो वेद अर्थात् आचरणवान तथा भगवद् अनुभूति प्राप्त आचार्य से दीक्षा लेने वाला तथा सद्गुरु के चरणों में परिपूर्ण श्रद्धा रखने वाला भक्तिमान व्यक्ति ही उस परब्रहम को जानता है। 
यहाँ तक कि गुरु को ग्रहण करने की अत्यावश्यकता की शिक्षा देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण, भगवान श्रीगौरसुन्दर एवं भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने भगवद् तत्त्व होकर भी गुरु ग्रहण की लीला की। श्रीकृष्ण ने श्री सान्दीपनि मुनि को, श्रीगौरसुन्दरजी  ने श्रीईश्वर पुरिपादजी को तथा श्रीरामचन्द्र जी ने श्रीवशिष्ट मुनि को गुरु रूप से वरण किया था।

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