विष्णुनाम, विष्णुरूप विष्णुगुणगणे॥
विष्णु हैते पृथग्रूपे ना मानिबे कभु।
अद्वय अखण्ड विष्णु चिन्मयत्वे विभु॥

नामाभास हय ता'र, प्रेम असम्भव॥
सद्गुरुकृपाय सेई अनर्थविनाश।
भजिते भजिते शुद्धनामेर प्रकाश॥
भगवान विष्णु का नाम, उनका रुप, उनके गुण में कोई अन्तर नहीं है, इन्हें श्रीविष्णु से कभी भी पृथक नहीं मानना चाहिए।
श्रीविष्णु तत्त्व अपने आप में चिन्मय है, अनन्त है तथा विभु है।
श्रीविष्णु तत्त्व से न तो कोई बड़ा है और न ही कोई उनके बराबर है।

हाँ, ऐसी स्थिति में उसका नामाभास हो सकता है। सद्गुरु की कृपा से यदि उसकी भेदबुद्धि रुपी अनर्थ खत्म हो जाये तो उसके हृदय में शुद्ध नाम प्रकाशित हो जायेगा।
- श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें