मंगलवार, 17 मई 2016

हम व्रत क्यों करते हैं? और क्या भूखे रहने से ही भगवान का भजन होता है?

व्रत का अर्थ होता है संकल्प  वैष्णव तन्त्र नामक ग्रन्थ में शरणागति के जो लक्षण दिये हैं, उसमें पहला ही लक्षण है 

'आनुकूलस्य संकल्पः' अर्थात्जिन जिन क्रियायों से भक्त और भगवान प्रसन्न होते हैं, उन सभी कार्यों को करने का संकल्प लेना। 

जैसे एकादशी का व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न होते हैं। तो मैं भगवान कीप्रसन्नता के लिए एकादशी व्रत कर्रूँगाइस प्रकार का संकल्प ही एकादशी का व्रतकहलाता है। 

व्रत का एक और पर्यायवाची शब्द होता है - उपवास  

उप् + वास = उप् का अर्थ होता है नज़दीकतथा वास का अर्थ होता है रहना। 

तो व्रत का एक और अर्थ हुआभगवान के अधिक से अधिक नज़दीक रहना। यानि की व्रतके दिन अधिक से अधिक समय भगवान के भक्तों के साथभगवान की चर्चा सुनते हुए,बोलते हुएअथवा
स्मरण करते हुएव्यतीत करना चाहिये। इसलिए भक्त लोगएकादशी आदि व्रत के दिनतुलसी की माला पर अधिकहरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करते हैं भक्तों के साथ अधिक समय तक संकीर्तन करते हैं।  
केवल मात्र भूखा रहना व्रत का तात्पर्य नहीं है।
व्रत का मुख्य तात्पर्य अपने आप को भगवान से जोड़ना है। हमारे शास्त्रों में एकादशी आदि व्रत में अनुक्ल्प की व्यवस्थादी गयी है। अनुक्ल्प का अर्थ होता है विकल्प  यानि कि व्रत में दालचावालरोटी इत्यादि नहीं खाते हैं  फिर यदि भूखलगे तो उसका विकल्प (alternate) क्या है
उसका विकल्प है कि हम फलदूधदहीपानी , इत्यादि ले सकते हैं। बिमार होनेपर दवाई भी  ले सकते हैं। कहने का अर्थ केवल मात्र भूखे रहने से ही भगवान का भजन नहीं होता हैभगवान कोप्रसन्न करने की चेष्टाओं को करने से ही भजन होता है।  
अन्त में हम इतना अवश्य कहना चाहेंगे की इस युग में शुद्ध भक्तों के साथ हरे कृष्ण महामन्त्र का संकीर्तनकरने से तथा विभिन्न प्रकार के व्रतों में अपने मन को ना उलझा करपूरी निष्ठा के साथ एकादशी  का व्रतकरने सेतथा भगवान के प्रेमी भक्तों की सेवा करने से भगवान जितना प्रसन्न होते हैंऔर क्रियाओं सेउतना प्रसन्न नहीं होते। अतः शुद्ध भक्तों के साथ हरे कृष्ण महामन्त्र का संकीर्तन करनाएकादशी व्रतकरनातथा भगवान के उच्च कोटी के भक्तों की सेवा   करना ही  सर्वोत्तम हरि भजन है।

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