

आप बचपन से ही पिता-माता और विष्णु-परायणा थीं। आप प्रतिदिन तीन बार गंगा-स्नान करती थीं। गंगा-स्नान को जाने के दिनों में ही शचीमाता के साथ आपका मिलन हुआ था। आप उनको प्रणाम करतीं तो शचीमाता आपको आशीर्वाद देतीं।

आपके और भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के विवाह की कथा को जो सुनता है, उसके तमाम सांसारिक बन्धन कट जाते हैं।
श्रीमन्महाप्रभु जी के द्वारा 24 वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण करने पर आप अत्यन्त विरह संतप्त हुईं थीं।
आपने अद्भुत भजन का आदर्श प्रस्तुत किया था।
आप मिट्टी के दो बर्तन लाकर अपने दोनों ओर रख लेतीं थीं। एक ओर खाली पात्र और दूसरी ओर चावल से भरा हुआ पात्र रख लेतीं थीं। सोलह नाम तथा बत्तीस अक्षर वाला मन्त्र (हरे कृष्ण महामन्त्र) एक बार जप कर एक चावल उठा कर खाली पात्र में रख देतीं थीं। इस प्रकार दिन के तीसरे प्रहर तक हरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करतीं रहतीं और चावल एक बर्तन से दूसरे बर्तन में रखती जातीं।
इस प्रकार जितने चावल इकट्ठे होते, उनको पका कर श्रीचैतन्य महाप्रभु
की को भाव से अर्पित करतीं। और वहीं प्रसाद पातीं।
कहाँ तक आपकी महिमा कोई कहे, आप तो श्रीमन्महाप्रभु की प्रेयसी हैं और निरन्तर हरे कृष्ण महामन्त्र करती रहती हैं।
आपने ही सर्वप्रथम श्रीगौर-महाप्रभु जी की मूर्ति (विग्रह) का प्रकाश कर उसकी पूजा की थी।

श्रीमती विष्णुप्रिया देवी द्वारा सेवित श्रीगौरांग की मूर्ति की अब भी श्रीनवद्वीप में पूजा की जाती है।
श्रीमती विष्णुप्रिया देवी जी की जय !!!!!!
आपके आविर्भाव तिथि पूजा महामहोत्सव की जय !!!!!!
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