शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

श्रील भक्ति कुमुद सन्त गोस्वामी महाराज जी के आशीर्वचन

1) भाषा से हरि-भक्ति का प्रचार नहीं होता। भक्ति से ही भक्ति का प्रचार होता है।

2) दुनियाँ में गरीब व्यक्ति भी सुखी नहीं है और धनी व्यक्ति भी सुखी नहीं है। वास्तविक सुख या आनन्द, दुनियाँ की वस्तु नहीं है। ये दिव्य वस्तु है, जिस पर पूरा अधिकार भगवान का है, वे इच्छा करके किसी को भी दे सकते हैं।

3) जो निष्कपट रूप से हरिभजन करता है वह किसी भी परिस्थिति में विचलित  (Unbalanced) नहीं होता।

4) सद्-गुरु को साधारण मनुष्य मानते रहने से शिष्य का कल्याण नहीं होता। 

-- श्रील भक्ति कुमुद सन्त गोस्वामी महाराज जी। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें