शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

परशुराम जी…क्षत्रीय विहीन पृथ्वी…तो फिर क्षत्रीय कैसे पुनः आये?

प्राचीन काल में जमदग्नि-कुमार परशुरामजी ने पिता के वध से क्रोधित होकर अपने फरसे से हैहय देश के अधिपति कार्तवीर्यार्जुन का विनाश कर दिया था। कार्तवीर्यार्जुन की हज़ार भुजाएँ काटने पर भी परशुराम जी शान्त नहीं हुए। दुबारा रथ पर चढ़ कर निकले और उन्होंने महा-अस्त्र के प्रयोग से 21 बार पृथ्वी को नि:क्षत्रिय कर दिया। इस प्रकार पृथ्वी क्षत्रियविहीन होने पर 'क्षत्रिय-पत्नियों' ने वेदों में पारंगत ब्राह्मणों के द्वारा सन्तान-उत्पत्ति की थी।

वेद-शास्त्र में इस प्रकार निर्देश है कि यदि कोई व्यक्ति विवाह करता है और
विवाह के बाद यदि उस व्यक्ति की जगह अन्य किसी वर्ण के व्यक्ति से सन्तान उत्पत्ति हो तो वह सन्तान उसी व्यक्ति के वर्ण की कहलाती है, जिससे उस स्त्री का पहले विवाह हुआ होता है। ये धर्म-विवेचना करके ही क्षत्रिय-पत्नियों ने ब्राह्मणों से संसर्ग किया जिससे पुनः क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें