एक बार मैं श्रील प्रभुपाद के कमरे में बैठा था कि बातों बातों मे उन्होंने मुझसे कहा -- तुम भी पत्रिका के लिये लेख लिखा करो।
मैनें कहा -- प्रभुपाद, आप बोलते हो, मैं लिखता हूँ, यही ठीक है । मैं स्वयं लेख नहीं लिख सकता।
प्रभुपाद जी ने कहा , 'उसमें क्या मुश्किल है, जो आप वैष्णवों से हरिकथा सुनते हो, जो गुरुवर्ग की वाणी है, जो शास्त्र की वाणी है, उसे लिखो।
मैंने विनम्रता से निवेदन किया, 'प्रभुपाद, यह मुझ से नहीं हो सकेगा।'
प्रभुपाद जी ने अपनी टेबल से कुछ कागज़ उठाये और मेरे सामने रख कर कहा -- इसमें लिखो। मैंने पूछा -- क्या लिखूँ ?
प्रभुपाद जी ने कहा, 'पहले 'श्रीश्री गुरु गौरांगौ जयतः' लिखो।'
प्रभुपाद जी के आदेशानुसार मैंने लिखना प्रारम्भ किया।
जब मैंने 'श्रीश्री गुरु…' लिख दिया………अभी मैं 'गौरांगौ' लिख रहा था कि तभी प्रभुपाद ने अपना दिव्य हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। ना जाने क्या शक्ति संचार की उन्होंने कि तभी से मेरी यह लेखनी अनवरत भाव से चल रही है। अब तो यह हाल है कि मैं अब 89 साल का बूढ़ा हो गया हूँ, चश्मा लगाकर भी मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता है परन्तु प्रभुपाद जी की ऐसी कृपा है कि मैं नये नये लेख लिखता चला जाता हूँ और बाद में उत्तल लैन्स (Magnifying glass ) से पढ़ता हूँ। यह है प्रभुपाद जी की अतिमर्त्य कृपा।…………
(वृन्दावन धाम, 29 अक्टूबर, 1987) -
- श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी ।
मैनें कहा -- प्रभुपाद, आप बोलते हो, मैं लिखता हूँ, यही ठीक है । मैं स्वयं लेख नहीं लिख सकता।
प्रभुपाद जी ने कहा , 'उसमें क्या मुश्किल है, जो आप वैष्णवों से हरिकथा सुनते हो, जो गुरुवर्ग की वाणी है, जो शास्त्र की वाणी है, उसे लिखो।
मैंने विनम्रता से निवेदन किया, 'प्रभुपाद, यह मुझ से नहीं हो सकेगा।'
प्रभुपाद जी ने अपनी टेबल से कुछ कागज़ उठाये और मेरे सामने रख कर कहा -- इसमें लिखो। मैंने पूछा -- क्या लिखूँ ?
प्रभुपाद जी ने कहा, 'पहले 'श्रीश्री गुरु गौरांगौ जयतः' लिखो।'
प्रभुपाद जी के आदेशानुसार मैंने लिखना प्रारम्भ किया।
जब मैंने 'श्रीश्री गुरु…' लिख दिया………अभी मैं 'गौरांगौ' लिख रहा था कि तभी प्रभुपाद ने अपना दिव्य हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। ना जाने क्या शक्ति संचार की उन्होंने कि तभी से मेरी यह लेखनी अनवरत भाव से चल रही है। अब तो यह हाल है कि मैं अब 89 साल का बूढ़ा हो गया हूँ, चश्मा लगाकर भी मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता है परन्तु प्रभुपाद जी की ऐसी कृपा है कि मैं नये नये लेख लिखता चला जाता हूँ और बाद में उत्तल लैन्स (Magnifying glass ) से पढ़ता हूँ। यह है प्रभुपाद जी की अतिमर्त्य कृपा।…………
(वृन्दावन धाम, 29 अक्टूबर, 1987) -
- श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी ।
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