
रघुनाथ भट्ट गोस्वामी जी रसोई बनाने में अत्यन्त सुनिपुण थे। श्रीमन्महाप्रभु जी भक्त के द्वारा प्रेम से दिये अमृत के समान पकाये व्यंजनादि का भोजन करके परम तृप्ति का अनुभव करते थे।
आपका अपूर्व कण्ठस्वर था। आप भागवत का पाठ करने के समय भागवत का एक एक श्लोक इतने सुमधुर कण्ठ स्वर में व बहुत से रागों के साथ पाठ करते थे, जिसे सुनने मात्र से ही भक्तिगण आपके प्रति आकृष्ट हो उठते थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें