शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

श्याम कुण्ड के किनारे के पाँच वृक्ष……………

बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीनन्द नन्दन कृष्ण यहाँ पर श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के रूप में आये हुये थ। उस समय वृन्दावन ऐसा नहीं था, जैसा हम देखते हैं। बहुत से स्थान लुप्त-प्रायः हो गये थे। 
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी ने अपने पार्षदों से कहा की श्रीकृष्ण की सभी लीला स्थलों को पुनः स्थापित करो। उसी दौरान जब श्रीमन्महाप्रभुजी वृन्दावन धाम आये तो आरिटग्राम गये। आपने ही धान (चावल) के खेत में स्नान करते हुये बताया था की वास्तव में यही राधा-कुण्ड व श्याम-कुण्ड हैं। तब से श्याम कुण्ड व राधा कुण्ड का पता चला। उस समय ये कुण्ड साफ नहीं थे और उनके घाट भी पक्के नहीं थे। 
बाद में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के पार्षद श्रील रघुनाथ दास गोस्वामीजी वहाँ आकर भजन करने लगे। एक दिन श्रीरघुनाथ दास गोस्वामीजी के मन में आया की अगर दोनों कुण्डों की सफाई हो जाती तो अच्छा होता। किन्तु दूसरे ही क्षण उन्होंने अपने आप को इस इच्छा के लिये धिक्कारा। भक्त-वत्सल भगवान अपने भक्त की सब इच्छायें पूरी करते हैं। 

हुआ यह की, कोई धनी व्यक्ति, भगवान बद्री नारायण जी को बहुत सा धन भेंट करने के लिये बद्रीनाथ धाम गया। श्रीबद्री नारायण जी उस सेठ को स्वप्न में आये और उसे मथुरा के आरिट ग्राम में श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी जी की इच्छानुसार राधा कुण्ड - श्याम कुण्ड
के संस्कार के लिये धन देने के लिये आदेश दिया। सेठ उसी समय आरिट ग्राम के लिये चल दिये। 

वहाँ आकर वे श्रील रधुनाथदास गोस्वामी को ढूंढने लगे। ढूंढते-ढूंढते जब वे श्रील रघुनाथ दास जी तक पहुँचे तो उन्होंने पूछा - क्या आप ही रघुनाथ दास गोस्वामी हैं? उत्तर में श्रीरघुनाथदास गोस्वामी जी ने कहा - जी, मैं ही गोस्वामियों का दास रघुनाथ हूँ। तब सेठ ने आपको सारी बात बताई। 

भगवान की इच्छा जान कर, दास गोस्वामी जी ने सहमति दी और आपकी इच्छा के अनुसार, दोनों कुण्डों से कीचड़ निकलवा कर रीति से कार्य हुआ। 

श्यामकुण्ड के किनारे पाँचो पाण्डव वृक्षों के रूप में रहते थे। श्यामकुण्ड को समकोण करने के लिये वृक्षों को काटने का संकल्प होने पर
युधिष्ठिर महाराज जी ने स्वप्न में श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी को वहाँ पाँचों पाण्डवों के वृक्षों के रूप में रहने की बात बतलाई । तब श्रील दास गोस्वामी ने वृक्षों को काटने की मनाही कर दी। इसी कारण श्यामकुण्ड समकोण यानि कि चौरस नहीं है।

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