अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक, श्रीश्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी कहा करते थे कि जैसे किसी बच्चे की तबीयत खराब हो और वह कड़वी दवाई न खाना चाहता हो, लाख समझाने पर भी न समझता हो तो उसके माता-पिता क्या करेंगे?
वे डाक्टर के पास जायेंगे और अपनी समस्या बतायेंगे।
ऐसे ही एक माता-पिता को उस डाक्टर ने पूछा कि इस बालक को क्या खाना पसन्द है?
माता ने कहा - इसे मीठे लड्डू खाने बहुत पसन्द हैं।
पिताजी गये और बाज़ार से लड्डू ले आये।
डाक्टर ने लड्डू बच्चे को दिखाते हुये पूछा - बेटा, लड्डू खाओगे?
बच्चे बहुत खुशी से 'हाँ' बोला।
तब डाक्टर ने बच्चे से कहा - लड्डू तो तुम्हें मिल जायेगा, लेकिन पहले यह दवाई खानी होगी।
बच्चे ने सोचा की दवाई खाने का फायदा ये है कि इसको खाने से लड्डू मिलता है। परन्तु सच्चाई तो यह नहीं है।
लड्डू तो एक प्रलोभन है, लालच है, वो दवाई देने के लिये। और दवाई तो उस बच्चे की अच्छी सेहत के लिये दी जाती है।
ठीक इसी प्रकार हमारे ॠषियों ने शास्त्रों में जो बताया कि एकादशी व्रत करने से रूपया-पैसा, बड़ा घर, सुन्दर रूप, पुत्र, आदि मिलता है, ये तो मात्र प्रलोभन है, लालच है। क्योंकि सांसारिक व्यक्ति न तो भगवान को चाहता है, न ही उसे भगवान की ज़रूरत महसूस होती है।
सांसारिक व्यक्ति को तो भगवान की भक्ति की ज़रूरत का पता ही नहीं है।
उसे तो बस यही पता है कि एकादशी व्रत करने से व हरिनाम संकीर्तन करने से पाप धुलते हैं और रूपया-पैसा - पुत्र आता है।
जबकि सच्चाई यह है कि एकादशी व्रत करने का लालच दिखाकर हमारे ॠषि सांसारिक आदमियों को उनके नित्य कल्याण के लिये, उन्हें भगवान की भक्ति में लगाते हैंं।
यह बात अलग है कि एकादशी करने से मनुष्यों को धन, घर, सुन्दर रूप, पुत्र आदि की प्राप्ति होती है, ठीक उसी तरह जैसे बच्चे को दवाई खाने के बदले लड्डू मिला था।
भगवान के महान भक्त श्रील रूप गोस्वामी जी ने बताया है कि एकादशी व्रत करना, भगवान के प्रमुख भक्ति अंगों में से एक है।
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