



एक स्वरचित भजन में आपने कहा है कि अपने दुर्लभ मानव जन्म के प्रति हमेशा सजग रहें क्योंकि ये स्वर्ण अवसर कभी भी छिना जा सकता है। इसके इलावा आपकी अपने परिवार, समाज व देश के प्रति जो भी कर्तव्य हैं, उन्हें करें परन्तु जीवन की हरेक परिस्थिति में बड़े यत्न के साथ हरिनाम का आश्रय लिये रहें।
जीवन अनित्य जानह सार, ताहे नानाविध विपद भार,
नामाश्रय करि यतने तुमि, थाकह आपन काजे ।

गौड़ीय मठ = श्रील भक्ति विनोद ठाकुर
एवं
गौड़ीय मठ - (minus) श्रील भक्ति विनोद ठाकुर = 0, अर्थात् श्रील भक्ति विनोद ठाकुरजी के बिना गौड़ीय मठ = 0
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