रविवार, 31 मई 2015

अतः यह दण्ड स्वीकार करो और उत्सव करो।

बड़े घनी घर के लड़के परन्तु वैराग्य के एक उदाहरण श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी अभी घर में ही रहते थे और हर समय यह चिन्ता करते रहते थे कि कैसे उनका संसार से उद्धार होगा?

संसार में ज़रा सी भी आसकित नहीं थी उनकी। सौभाग्य से जब ये खबर उन्हें मिली कि पास के गाँव पाणिहाटि में श्रीनित्यानन्द जी आये हुये हैं, खुशी से उछल पड़े रघुनाथ दास जी। और यह सोच कर वे पाणिहाटि गये कि भक्त की कृपा होने से अवश्य ही भगवान की कृपा होगी।
जिस समय श्रील रघुनाथ दास जी वहाँ पहुँचे, उस समय श्रीनित्यानन्द प्रभु गंगा नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे और वहाँ पर बहुत से भक्त उपस्थित थे। श्रील रघुनाथ जी ने दूर से ही श्रीनित्यानन्द प्रभु को दण्डवत् प्रणाम किया।

श्रीनित्यानन्द प्रभु ने कृपावश उनको खींच कर अपने पास बिठा लिया और चोर बोल उन्हें सम्बोधित किया।

 सारे भक्त हैरान कि नित्यानन्दजी इन्हें चोर क्यों कह रहे हैं।  श्रील रघुनाथजी के मन का भाव जान कर, मज़ाक करते हुये नित्यानन्द जी बोले - हे चोर! तुम पास नहीं आते हो, मुझ से दूर भागते रहते हो। आज पकड़े ही गये। भगवान तो भक्तों की सम्पत्ति होते हैं और तुम भक्तों को पूछे बगैर सीधा महाप्रभुजी के पास चले गये।


रघुनाथ जी समझ गये कि प्रभु ने उन्हें वापस घर क्यों  भेजा। सिर झुकाकर उन्होंने अपनी गलती स्वीकर करी।

तभी नित्यानन्दजी ने कहा कि गलती की है तो अब यह दण्ड स्वीकार करो। सभी भक्तों को दधि-चिड़वे का उत्सव करवाओ।

यह सुनकर श्रील रघुनाथ दास जी बहुत प्रसन्न हुये।

श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने श्रीमन् नित्यानन्द प्रभुजी के कृपा निर्देश से पाणिहाटि में जो महोत्सव किया था, वह आज भी 'पाणिहाटि का चिड़वा दही महोत्सव' के नाम से प्रसिद्ध है।

आज की ही तिथि पर यह उत्सव हुआ था।

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