सतयुग, त्रेतायुग व द्वापरयुग के मनुष्य अधिक तपस्या करने व शरीर के कई क्लेशों को सहने का सामर्थ्य रखते थे।
आमतौर
पर देखा जाता है कि कलियुग में मानवों की आयु बहुत ज्यादा नहीं होती है।
और उसमें भी वे निरन्तर अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिये संघर्ष करते
रहते हैं। इसी वजह से वे अधिक समय तक तपस्या नहीं कर सकते।
इन्हीं
कारणों से कलियुग में जन्में मनुष्य के लिए हमारे शास्त्रों में बहुत ही
कम समय की तपस्या करने की व्यवस्था दी गयी है। अर्थात् कलियुग के मनुष्यों
के लिये महीने के केवल दो दिन ही तपस्या करने का विधान है।
महीने
के दो दिन अर्थात् एकादशी तिथि वाले दिन बिना भोजन-पानी के
निराहार व निर्जल रहकर तपस्या करनी होती है। कलियुग में हर मनुष्य को वैसे तो रोज़ाना, नहीं तो कम से कम एकादशी के दिन हरि-कीर्तन करना चाहिये। एकादशी को हरिवासर भी कहते हैं ।
निराहार व निर्जल रहकर तपस्या करनी होती है। कलियुग में हर मनुष्य को वैसे तो रोज़ाना, नहीं तो कम से कम एकादशी के दिन हरि-कीर्तन करना चाहिये। एकादशी को हरिवासर भी कहते हैं ।
'…………श्रीहरिवासरे हरि-कीर्तन विधान………'
जो
तो पूरा एकादशी व्रत करने में समर्थ हैं, वे एकादशी से एक दिन पहले
अर्थात् दशमी के दिन एक बार खाना खाते हैं, एकादशी के दिन कुछ भी खाते-पीते
नहीं हैं, यहाँ तक कि पानी भी नहीं पीते तथा एकादशी के अगले दिन अर्थात्
द्वादशी के दिन भी एक बार ही भोजन ग्रहण करते हैं।
जो
लोग इतना नहीं कर पायेंगे, उनके लिये नियम है कि वे लोग दशमी व द्वादशी को
नियमित रूप से भोजन करेंगे तथा एकादशी को कुछ भी नहीं पीयेंगे या खायेंगे।
जो लोग इतना भी नहीं कर सकते, वे दशमी को पूरा खाना खायेंगे और एकादशी को केवल फल, इत्यादि ही खायेंगे।
वैसे एकादशी के दिन सभी फल, दूध, पनीर, दही, जल, आलू, घी, मूँफली या उसका तेल, सैंधा नमक, काली मिर्च का सेवन कर सकते हैं।
एकादशी के दिन सभी प्रकार के पाप अन्न में आ बसते हैं। इस दिन अन्न खा लेने से, पाप के फल का भागी होना पड़ता है।
पूरे वर्ष में 24 एकादशी होती हैं।
एक
बार पाण्डु पुत्र भीमसेन ने श्रील वेदव्यासजी से पूछा - हे परमपूजनीय
विद्वान पितामह! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी
करने के लिये कहते हैं। किन्तु मुझसे भूखा नहीं रहा जाता। आप ही कृपा करके
मुझे बतायें कि उपवास किये बिना एकादशी का फल कैसे मिल सकता है?
श्रीलवेदव्यासजी
बोले - पुत्र भीम! यदि आपको स्वर्ग बड़ा प्रिय लगता है, वहाँ जाने की इच्छा
है, और नरक से डर लगता है तो हर महीने की दोनों एकादशी को व्रत करना ही
होगा।
भीमसेन ने जब ये कहा कि यह उनसे नहीं हो पायेगा तो श्रीलवेदव्यासजी
बोले - ज्येष्ठ महीने के शुल्क पक्ष की एकादशी को व्रत करना। उसे निर्जला कहते हैं। उस दिन अन्न तो क्या, पानी भी नहीं पीना। एकादशी के अगले दिन प्रातः काल स्नान करके, स्वर्ण व जल दान करना। वह करके, पारण के समय (व्रत खोलने का समय) ब्राह्मणों व परिवार के साथ अन्नादि ग्रहण करके अपने व्रत को विश्राम देना। जो एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है, तथा पूरी विधि से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशियाँ आती हैं, उन सब एकादशियों का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से सहज ही मिल जाता है।
बोले - ज्येष्ठ महीने के शुल्क पक्ष की एकादशी को व्रत करना। उसे निर्जला कहते हैं। उस दिन अन्न तो क्या, पानी भी नहीं पीना। एकादशी के अगले दिन प्रातः काल स्नान करके, स्वर्ण व जल दान करना। वह करके, पारण के समय (व्रत खोलने का समय) ब्राह्मणों व परिवार के साथ अन्नादि ग्रहण करके अपने व्रत को विश्राम देना। जो एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है, तथा पूरी विधि से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशियाँ आती हैं, उन सब एकादशियों का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से सहज ही मिल जाता है।
यह सुनकर भीमसेन उस दिन से इस निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करने लगे।
वैसे
तो शास्त्राज्ञा है कि किसी सदाचारी आचरणवान ब्राह्मण व अपने प्रामाणिक
गुरु-आज्ञा से ही एकादशी व्रत वाले दिन कुछ भी खाया जा सकता है, अन्यथा सभी
एकादशियों का पालन हर मनुष्य का कर्तव्य है। केवल 8 वर्ष से छोटी आयु अथवा
80 वर्ष से वृद्ध को इससे छूट है।
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