बुधवार, 29 अप्रैल 2015

बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, आयु, यश………

एक माँ अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला तो वह रोने लगी व बच्चे का नाम लेकर ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगी।  कुछ ही समय उपरान्त उसका बच्चा उसके पास भाग आया। माँ ने पहले तो बच्चे को पुचकारा व गले से लगा लिया, कुछ देर बाद वह उसे डांटने लगी। जब पूछा की कहाँ छुपा हुआ था तो बालक बोला - 'माँ ! मैं छुपा हुआ नहीं था। मैं तो घर के बाहर की दुकान से गोंद लेने गया था।'

माँ ने जब पूछा की गोंद से क्या करना है तो बालक भोलेपन से बोला - ' माँ ! मैं उससे चाय का कप जोड़ूँगा ।फिर जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उसी कप में तुम्हें चाय पिलाया करूँगा।'

माँ का शरीर यह सुनते ही पसीने से तर ब तर हो गया। कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे? होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया व प्यार से कहा -'बेटा, ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। पापा कितनी मेहनत करते हैं ताकि तुम अच्छे स्कूल जा सको। मम्मी सुस्वादु भोजन बनाती है, तुम्हारे लिये। इतनी मेहनत करते हैं, हम तुम्हारे लिये, ताकि तुम हमारे बुढ़ापे का सहारा बनो………।'
बच्चे ने माँ की बात बीच में ही काटते हुये कहा -'माँ ! क्या दादा-दादी ने यही नहीं सोचा होगा जब वे पापा को पढ़ाते होंगें। आज जब दादी से गलती से चाय का कप टूट गया था तो तुम कितना ज़ोर से चिल्लाईं थीं। इतना गुस्सा किया था आपने की दादाजी को आपसे दादी के लिये माफी माँगनी पड़ी थी। पता है माँ, आप तो कमरे में जाकर सो गईं, दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वो कप संभाल कर रख लिया है, और अब उसे जोड़ूंगा।'

माँ को यह सूझ ही नहीं रहा था, कि वह क्या करे? 

बच्चे को पुचकारते हुये बोली -'मैं भी तब से अशान्त ही हूँ'।

यह स्थिति आजकल अक्सर घर-घर में पाई जाती है। हमारे संत त्रिकालदर्शी हैं, तभी तो उस माँं अथवा उस जैसे सभी जनों के लिये उन्होंने लिखा -

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोये,
औरों को शीतल करे, आपहुँ शीतल होये॥

कैसी अद्भुत परिस्थिति होती जा रही है हमारे समाज की। हम बड़े-छोटे का लिहाज ही भूल गये हैं। रूपया-पैसा आवश्यक है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की आप धन के लिये बड़ों का सम्मान करना ही छोड़ दें। शास्त्र तो यहाँ तक कहता है कि धारदार अस्त्र का घाव भर जाता है, किन्तु वाणी द्वारा दिया हुआ घाव नहीं भरता।

हमें यह कदापि नहीं विस्मरण करना चाहिये कि इन्हीं माता-पिता के कारण हम आज समाज में सम्मान से रह रहे हैं। यही वे पिता हैं जो हमारे द्वारा किये गये नुक्सान को हँस कर टाल देते थे। यही वह माता हैं, जो हमारे आंसू रोकने के लिये औरों से भिड़ जाती थी। आज वे जब वृद्ध हो गये हैं तो हमार धर्म बनता है कि हम उनकी सेवा करें। 

बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, आयु, यश व ज्ञान में वृद्धि होती है। 

अगर हमारे बड़े हमसे अप्रसन्न हो गये तो न जाने हम किस-किस से वंचित रह जायेंगे।

एक साधारण सिद्धान्त है कि बच्चे हम से ही सीखते हैं। हम जो जो करते हैं वे उसी की नकल करते हैं। अगर हम बड़ों का सम्मान करेंगे तो वे भी सम्मान करना ही सीखेंगे।

एक बड़ा प्रसिद्ध गाना है - 'जैसा कर्म करेगा इंसान, वैसा फल देगा भगवान'।

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