यह सारा संसार रजो-गुण से पैदा होता है, सतो-गुण से उसका संरक्षण व पालन होता है तथा तमो-गुण से उसका संहार होता है।
संसार में जो कुछ भी हम देख रहे हैं, ये पहाड़, ये पेड़-नदियां, ये मकान, ये गाड़ियाँ, अथवा हमारा शरीर --- ये सब कुछ त्रिगुण के विकार हैं। हम साधारण मनुष्य अब जो भी सुबह से अगली सुबह तक कार्य करते हैं उसमें कुछ राजसिक होते हैं, कुछ तामसिक व कुछ सातविक होते हैं। और उसी के फलस्वरूप हम कभी सुखी होते हैं, कभी थोड़ा दुःखी होते हैं तो कभी बहुत ज्यादा दुःखी होते हैं। यही नहीं, हमारे परिवार के लोग, हमारा घर, मकान, रूपया-पैसा, सांसारिक ऐश्वर्य, कभी उनसे बहुत ज्यादा आसक्त हो जाते हैं तो कभी इनसे परेशान हो जाते हैं। और इन तीन गुणों के व तीन गुणों के अधीन कार्यों का प्रभाव हमारे मन पर, बुद्धि पर व इच्छाओं पर भी होता है।
जब हम सात्विक भाव में होते हैं तो हमें दूसरों को सम्मान देना, दूसरों को सुख देना, अच्छे कार्य करना, इत्यादि करना अच्छा लगता है।
इसी प्रकार जब हम राजसिक भावों में होते हैं, तो हमें जो कुछ भी प्राप्त है उसमें सन्तुष्टि नहीं होती। हमारे मन में कई तरह की इच्छायें जागती हैं कि यह भी हो, ऐसा भी हो, इत्यादि।
संसार में जो कुछ भी हम देख रहे हैं, ये पहाड़, ये पेड़-नदियां, ये मकान, ये गाड़ियाँ, अथवा हमारा शरीर --- ये सब कुछ त्रिगुण के विकार हैं। हम साधारण मनुष्य अब जो भी सुबह से अगली सुबह तक कार्य करते हैं उसमें कुछ राजसिक होते हैं, कुछ तामसिक व कुछ सातविक होते हैं। और उसी के फलस्वरूप हम कभी सुखी होते हैं, कभी थोड़ा दुःखी होते हैं तो कभी बहुत ज्यादा दुःखी होते हैं। यही नहीं, हमारे परिवार के लोग, हमारा घर, मकान, रूपया-पैसा, सांसारिक ऐश्वर्य, कभी उनसे बहुत ज्यादा आसक्त हो जाते हैं तो कभी इनसे परेशान हो जाते हैं। और इन तीन गुणों के व तीन गुणों के अधीन कार्यों का प्रभाव हमारे मन पर, बुद्धि पर व इच्छाओं पर भी होता है।
जब हम सात्विक भाव में होते हैं तो हमें दूसरों को सम्मान देना, दूसरों को सुख देना, अच्छे कार्य करना, इत्यादि करना अच्छा लगता है।
इसी प्रकार जब हम राजसिक भावों में होते हैं, तो हमें जो कुछ भी प्राप्त है उसमें सन्तुष्टि नहीं होती। हमारे मन में कई तरह की इच्छायें जागती हैं कि यह भी हो, ऐसा भी हो, इत्यादि।
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