शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

हरिनाम संख्या-बाँध के क्यों करना चाहिए?

यह सारा संसार रजो-गुण से पैदा होता है, सतो-गुण से उसका संरक्षण व पालन होता है तथा तमो-गुण से उसका संहार होता है। 

संसार में जो कुछ भी हम देख रहे हैं, ये पहाड़, ये पेड़-नदियां, ये मकान, ये गाड़ियाँ, अथवा हमारा शरीर --- ये सब कुछ त्रिगुण के विकार हैं।  हम साधारण मनुष्य अब जो भी सुबह से अगली सुबह तक कार्य करते हैं  उसमें कुछ राजसिक होते हैं, कुछ तामसिक व कुछ सातविक होते हैं। और उसी के फलस्वरूप हम कभी सुखी होते हैं, कभी थोड़ा दुःखी होते हैं तो कभी बहुत ज्यादा दुःखी होते हैं। यही नहीं, हमारे परिवार के लोग, हमारा घर, मकान, रूपया-पैसा, सांसारिक ऐश्वर्य, कभी उनसे बहुत ज्यादा आसक्त हो जाते हैं तो कभी इनसे परेशान हो जाते हैं। और इन तीन गुणों के व तीन गुणों के अधीन कार्यों का प्रभाव हमारे मन पर, बुद्धि पर व इच्छाओं पर भी होता है। 

जब हम सात्विक भाव में होते हैं तो हमें दूसरों को सम्मान देना, दूसरों को सुख देना, अच्छे कार्य करना, इत्यादि करना अच्छा लगता है। 

इसी प्रकार जब हम राजसिक भावों में होते हैं, तो हमें जो कुछ भी प्राप्त है उसमें सन्तुष्टि नहीं होती। हमारे मन में कई तरह की इच्छायें जागती हैं कि यह भी हो, ऐसा भी हो, इत्यादि।
जब हम तामसिक भावों में होते हैं, तो हमें दूसरों का सुख देखकर, जलन ईर्ष्या होती है। उसका बुरा करने की प्रवृति हमारे अन्दर जागृत होती है अथवा क्रोध इत्यादि के द्वारा हम अपने से बड़ो का अपमान करके अथवा दूसरों को कष्ट देकर सन्तुष्टि का अनुभव करते हैं। 

हमें इन तीनों गुणों से ऊपर उठना है, क्योंकि ये तीनों गुण माया के हैं और जीव को हमेशा माया में ही फंसा कर रखते हैं। इन तीनों गुणों से जीव को ऊपर उठाने के लिये सबसे ज्यादा सहायक होता है भगवान का दिव्य नाम्। विशेषकर के हरे कृष्ण महामन्त्र। क्योंकि इस साधना के लिये, हमें उत्साह निश्चयता, धैर्य तथा आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ने कि प्रवृति, बुरे कार्यों को छोड़ने के लिये ताकत, एवं अच्छे कार्यों को करने कि प्रवृति ----- ये हरिनाम प्रदान करता है। किन्तु समस्या ये है कि जब हम रजो गुण और तमो गुण के प्रभाव से प्रभावित रहते हैं, तो अच्छे कार्यों को करने के लिये, अथवा हरिनाम करने के लिये भी उत्साही नहीं होते। 

जैसे छोटे बच्चे को प्रेरित किया जाता है कि वो समय समय पर दवाई खाये, अथवा निश्चित समय तक स्कूल की पढ़ाई करे, जिससे बच्चा स्वस्थ हो सक्ता है या विद्वान बन सकता है, इसी प्रकर हमारे आचार्यों ने हमें संख्या पूर्वक हरिनाम करेने के लिये उपदेश दिया। अन्यथा हम शरारती बच्चे की तरह कभी पढ़ाई करेंगे और ज्यादातर नहीं करेंगे। कभी समय पर दवाई खायेंगे और ज्यादातर नहीं खायेंगे। 

संख्यापूर्वक हरिनाम हमें निरन्तर आध्यात्मिक मार्ग में आगे तो बढ़ाता ही है, साथ ही विभिन्न प्रकार की मुसीबतों से बचाता भी है। 


यही कारण है, की श्रीरूप गोस्वामी,  श्रीसनातन गोस्वामी, श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी तथा हरिनाम के आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर, यहाँ तक इस संसार में हरिनाम संकीर्तन  का प्रवर्तन करने वाले भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी अपनी इस जगत की लीला में संख्या पूर्वक हरिनाम करते रहे हैं व अपने अनुगत जनों को संख्यापूर्वक हरिनाम करने के लिए प्रेरित करते रहे हैं।  

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