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वहाँ के राजा की रानी के साथ आपकी पत्नी की खूब मित्रता हो गयी। उन दिनों सती होने की प्रथा प्रचलित थी।

रानी अपने भाई की मौत पर भाई की पत्नी के सती होने के लिए विलाप कर रही थी। इस पर पद्मावती ने रानी से कहा -- स्वामी की मृत्यु पर पतिव्रता पत्नी के प्राण शरीर में नहीं रहते।
राजमहिषी ने पद्मावती के इस वाक्य को सुनकर उसके इस 'वाक्य' की परीक्षा के लिए, एक दिन उनको, उनके पति जयदेव के आकस्मिक निधन का समाचार दिया।
इस दारुण समाचार को सुनते ही पतिव्रता सती पद्मावती ने प्राण त्याग दिये। राज महिषी इसके लिए अपने को दोषी मानकर, बहुत शोक संतप्त होकर रोने लगी।
राजा रोते-रोते जयदेव जी के पास आए और उसके प्राण दान के लिए विशेष भाव से अनुरोध करने लगे।
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इस प्रकार दोनों का अति अद्भुत महत्व दर्शन करके, राजा-रानी सहित समस्त राज-परिवार श्रीजयदेव व पद्मावती के चरणों में बार-बार प्रणाम करने लगा।
श्रीमती पद्मावती जी की जय !!!!
श्रील जय देव गोस्वामी जी की जय !!!!
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