रविवार, 11 जनवरी 2015

एक पतिव्रता पत्नी

भगवान श्रीकृष्ण के भक्त श्रील जयदेव गोस्वामी जी की पत्नी का नाम श्रीमती पद्मावती था।  बात उन दिनोंं की है जब श्रीजयदेव जी एक राजा के यहाँ अतिथि रूप से रह रहे थे। 
वहाँ के राजा की रानी के साथ आपकी पत्नी की खूब मित्रता हो गयी। उन दिनों सती होने की प्रथा प्रचलित थी।

रानी अपने भाई की मौत पर भाई की त्नी के सती होने के लिए विलाप कर रही थी। इस पर पद्मावती ने रानी से कहा -- स्वामी की मृत्यु पर पतिव्रता पत्नी के प्राण शरीर में नहीं रहते।

राजमहिषी ने पद्मावती के इस वाक्य को सुनकर उसके इस 'वाक्य' की परीक्षा के लिए, एक दिन उनको, उनके पति जयदेव के आकस्मिक निधन का समाचार दिया।
इस दारुण समाचार को सुनते ही पतिव्रता सती पद्मावती ने प्राण त्याग दिये। राज महिषी इसके लिए अपने को दोषी मानकर, बहुत शोक संतप्त होकर रोने लगी। 

राजा रोते-रोते जयदेव जी के पास आए और उसके प्राण दान के लिए विशेष भाव से अनुरोध करने लगे। 

भक्त प्रवर जयदेवजी पद्मावती के पास गये और उनके कर्ण कुहरों में कृष्ण-नामामृत का सिंचन करने लगे। पद्मावती ने नींद से जागे मनुष्य की भान्ति अपने आप को सम्भाला।  

इस प्रकार दोनों का अति अद्भुत महत्व दर्शन करके, राजा-रानी सहित समस्त राज-परिवार श्रीजयदेव व पद्मावती के चरणों में बार-बार प्रणाम करने लगा।

श्रीमती पद्मावती जी की जय !!!!

श्रील जय देव गोस्वामी जी की जय !!!!

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