शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

वेद्य क्या हैं?

एक बार पाण्डव द्वैत नामक वन में रह रहे थे। एक दिन भीमसेन आखेट खेलने चले गये।

वहाँ एक महाशक्तिशाली अजगर के चंगुल म फँस गये।

बहुत चेष्टा करने पर भी बलशाली भीम अपने-आप को जब सर्प की लपेट से छुड़ा न सके तो अति-विस्मित हो गये और उन्होंने सर्प को अपना वास्तविक परिचय देने को कहा।
भीम की बात सुनकर अजगर ने कहा कि वह भूखा है, इसलिए उसे खाना चाहता है। सर्प की इस प्रकार के उत्तर को सुनकर भीम को अपनी मृत्यु की चिन्ता तो नहीं हुई परन्तु वे यक्षों व राक्षसों से भरे जंगल में भाईयों की रक्षा के लिये व्याकुल हो उठे।

इधर महाराज युधिष्ठिरजी नाना प्रकार के भयंकर अपशकुन देखते लगे। भीम जब बहुत समय तक नहीं आये तो युधिष्ठिर बहुत चिन्तित हो उठे।

तत्पश्चात धनन्जय को द्रौपदी की रक्षा के लिये रखकर तथा नकुल व सहदेव को ब्राह्मणों की रक्षा का भार देकर स्वयं धौम्य ॠषि के साथ भीम
की खोज में निकल पड़े।

काफी रास्ता तय करने के बाद उन्होंने देखा कि ऊसर भूमि पर एक अजगर ने भीमसेन को जकड़ा हुआ है। चार दाँतों वाला अजगर अति-भयंकर था, उसका रंग सुनहरा व मुँह गुफा की तरह था।

भीमसेन से सर्प के चंगुल में फंसने का सारा वृतान्त सुनने के बाद युधिष्ठिर महाराज ने महासर्प को अपना ठीक-ठाक परिचय देने को कहा।

अपना परिचय देते हुये सर्प ने कहा -- मैं तुम्हारा पूर्व-पुरुष सोमवंशीय आयु राजा का पुत्र हूँ। मेरा नाम नहुष है। यज्ञ व तपस्या के बल से मैंने त्रिलोकी का ऐश्वर्य प्राप्त किया था। मैं स्वर्ग का अधिपति भी बना था परन्तु ऐश्वर्य प्राप्त करने के बाद मुझे घमण्ड हो गया और मैंने अपनी पालकी को ढोने के लिए एक हज़ार ब्राह्मणों को लगवा दिया था। ब्रह्मर्षि, देवता, गन्धर्व व राक्षस आदि त्रिलोकी के जीव मुझे कर दिया करते थे। मैं दृष्टि के द्वारा ही
सभी का तेज हरण कर लेता था। एक दिन अगस्त्य मुनि जब मेरी पालकी का वहन कर रहे थे तो उसी समय दैववशतः मेरा पैर उनके शरीर पर लग गया और उन्होंने 'सर्प योनि को प्राप्त हो जाओ' - कहकर मुझे अभिशाप दिया। उसी से मेरी ये दुर्गति हुई। मेरे द्वारा नाना प्रकार के स्तव करने से वे सन्तुष्ट हुये तथा कहने लगे कि युधिष्ठिर महाराज तुम्हारा उद्धार करेंगे। यदि आप मेरे प्रश्नों का सही-सही उत्तर दे पायेंगे तो मैं भीमसेन को नहीं खाऊँगा, इन्हें छोड़ दूँगा।

युधिष्ठिर महाराज ने जब उसके प्रश्नों को जानना चाहा तो सर्प ने पहले उनसे दो प्रश्नों का उत्तर जानना चाहा।

1) ब्राह्मण कौन है?

2) वेद्य क्या हैं?

इनके उत्तर में युधिष्ठिर महाराज कहने लगे --

1) सत्य, दान, क्षमाशीलता, अक्रूरता, तपस्या व दया - जिनमें दिखाई दें, वही ब्राह्मण हैं।

2) जो सुख-दुःख रहित हैं तथा जिनको जानने से मनुष्य शोक को प्राप्त नहीं होता, वे परब्रह्म ही वेद्य हैं।

इस प्रकार महासर्प के साथ कुछ समय युधिष्ठिर महाराज जी के प्रश्नोत्तर हुये। युधिष्ठिर महाराज से सभी प्रश्नों के सही-सही उत्तर पाकर नहुष प्रसन्न हुये तथा सुचने लगे कि मनुष्य शूर और सुबुद्धि होने पर भी प्रायः ऐश्वर्य के घमण्ड में मत्त होकर पतित हो जाता है, इसके उदाहरण वे स्वयं ही हैं।

तत्पश्चात् नहुष ने भीमसेन को छोड़ दिया और स्वयं शाप-मुक्त होकर दिव्य देह धारण कर वहाँ से चले गये।

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