शनिवार, 12 जुलाई 2014

जन्म लेते ही आपने माता को घर जाने के लिये कहा।

श्रीकृष्ण्द्वैपायन वेदव्यास मुनि जी का पावन चरित्र श्रीमद् भागवत्-शास्त्र, विष्णु-पुराण एवं महाभारत, इत्यादि विभिन्न शास्त्रों में वर्णित हुआ है।

दशराज की कन्या सत्यवती एवं पराशर जी को अवलम्बन करके वेदों के प्रवर्तक श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी अवतीर्ण हुए। आप भगवान श्रीहरि के 17वें अवतार हैं। 

दशराज बहुत धार्मिक थे। उनकी एक नौका थी। एक बार सत्यवती देवी युवावस्था में नौका चलाने चली गयी। श्रीहरि की इच्छा से धार्मिक श्रेष्ठ पराशर मुनि को नदि के पार जाना था, व इसी कारणवश वे सत्यवती की नौका पर जा बैठे । सत्यवती के शरीर से मत्स्य (मछली) की गंध आती थी, इसलिये उसे मत्स्य-गंधा भी कहते थे। 

श्रीपराशर मुनि ने नौका पार करवाने के कारण उसको वरदान दिया जिसके चलते सत्यवती के शरीर से सुगन्ध आने लगी। उसका शरीर सुन्दर हो
गया व वह कस्तुरी की गंध वाली हो गयी। उसकी इच्छा के अनुसार व अपने योग-बल से ॠषि पराशर ने दिन में अंधकार कर दिया। उसको यह भी वरदान मिला की उसका कन्या-व्रत नष्ट नहीं होगा व उसका पराशर मुनि के समान ही तेजस्वी पुत्र उत्पन्न होगा एवं उसके शरीर की ये गंध हमेशा बनी रहेगी।

श्रीहरि की इच्छा से शुभ मुहुर्त में कृष्ण-द्वीप में श्रीवेद-व्यास मुनि का आविर्भाव हुआ। ऐसा कहा जाता है कि आपका जन्म ही ॠषि के वेष में हुआ था। आपने जन्म लेते ही माता को घर जाने के लिये कहा व ये भी कहा कि जब भी वे आपको स्मरण करेंगीं, आप आ जायेंगे। इसके तुरन्त बाद आप तपस्या में लग गये। 
द्वीप में उत्पन्न होने के कारण आपका नाम द्वैपायन हुआ।

आप ही ने वेदों का व्यास अर्थात् विभाग किया, इसलिये आपका नाम वेद-व्यास हुआ।

आप ही ने वेदों के अंत - वेदान्त की रचना की। आप ही ने वेदान्त के भाष्य के रूप में श्रीभागवत लिखा।

यह श्रीमद् भागवत् ही ब्रह्म-सूत्र का अर्थ है। इसी में महाभारत का तात्पर्य निर्णय किया गया है।  यह भागवत -- गायत्री का भाष्य भी है एवं ये समस्त वेदों के तात्प्र्य द्वारा पुष्ट है। 
   
 श्रीकृष्ण-द्वैपायनॠषि वेद-व्यास जी की जय !!!!!

आपके आविर्भाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!
श्रीगुरु-पूर्णिमा की जय !!!!!

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