प्रातः स्मरणीय श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने 'श्रीगौर पार्षद एवं गौड़ीय वैष्णव आचार्यों के जीवन चरित्र' नामक ग्रन्थ में बताया है कि श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीलाओं के श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी, भगवान श्रीकृष्ण की लीला में अनंग मन्जरी हैं। कुछ लोग आपको गुण मंजरी भी कहते हैं।
आप सन् 1500 में दक्षिण भारत के श्रीरंग क्षेत्र में, श्रीवैंकट भट्ट के पुत्र के रूप में आविर्भूत हुये।
आपके दो प्रमुख शिष्य थे - श्रीनिवास आचार्य प्रभु तथा श्रीगोपीनाथ पुजारी।
एक बार श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी हरिद्वार के निकट सहारनपुर
शहर गये। वहाँ आप एक सरल भक्तिमान ब्राह्मण के घर पर ठहरे जिसने निष्कपट भाव आपकी बहुत सेवा की। उन ब्राह्मण का कोई पुत्र नहीं था। आप उन ब्राह्मण के हृदय के भावों को जान गये, व उनको हरि-भक्ति परायण पुत्र होने के लिये आशीर्वाद दिया।
ब्राह्मण ने तब वादा किया कि वे अपने पहले पुत्र को आपकी सेवा में समर्पित कर देंगे। उस ब्राह्मण को आपकी कृपा से सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।
उस ब्राह्मण के वे पुत्र ही श्रीगोपीनाथ पुजारी थे।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के प्रति स्नेह से भरकर आपको अपनी डोर, कौपीन और काली लकड़ी का आसन भेजा था। वृन्दावन में श्रीराधारमण मन्दिर में श्रीमहाप्रभुजी के उस डोर, कौपीन और आसन की आज भी पूजा होती है।
श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!
आप सन् 1500 में दक्षिण भारत के श्रीरंग क्षेत्र में, श्रीवैंकट भट्ट के पुत्र के रूप में आविर्भूत हुये।
आपके दो प्रमुख शिष्य थे - श्रीनिवास आचार्य प्रभु तथा श्रीगोपीनाथ पुजारी।
एक बार श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी हरिद्वार के निकट सहारनपुर
शहर गये। वहाँ आप एक सरल भक्तिमान ब्राह्मण के घर पर ठहरे जिसने निष्कपट भाव आपकी बहुत सेवा की। उन ब्राह्मण का कोई पुत्र नहीं था। आप उन ब्राह्मण के हृदय के भावों को जान गये, व उनको हरि-भक्ति परायण पुत्र होने के लिये आशीर्वाद दिया।
ब्राह्मण ने तब वादा किया कि वे अपने पहले पुत्र को आपकी सेवा में समर्पित कर देंगे। उस ब्राह्मण को आपकी कृपा से सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।
उस ब्राह्मण के वे पुत्र ही श्रीगोपीनाथ पुजारी थे।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के प्रति स्नेह से भरकर आपको अपनी डोर, कौपीन और काली लकड़ी का आसन भेजा था। वृन्दावन में श्रीराधारमण मन्दिर में श्रीमहाप्रभुजी के उस डोर, कौपीन और आसन की आज भी पूजा होती है।
श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!
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