रविवार, 22 जून 2014

जब आपने भगवान को भक्ति का उपदेश दे दिया

बात उन दिनों की है जब श्रीमन् चैतन्य महाप्रभु जी नवद्वीप में अभी अपना वास्तविक रूप, प्रकट नहीं किया था। श्रीमहाप्रभु (निमाई) उस समय सभी भक्तों से तर्क-वितर्क किया करने थे, व उनके विचारों को खण्डन करके उन्हें पुनः स्थापन किया करते थे।
एक दिन श्रीवास पण्डित ने श्रीमहाप्रभु को रास्ते में जाते देखा तो बुला कर कहा --'लोग कृष्ण-भक्ति प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करते हैं। यदि पढ़ लिखकर कृष्ण में भक्ति ही न हुई तो ऐसी विद्या से क्या लाभ? अतएव समय को नष्ट न करके तुम जल्दी से कृष्ण का भजन करना आरम्भ कर दो।'
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने ही भक्त के मुख से यह बात सुनकर प्रसन्नतापूर्वक बोले -- 'तुम भक्त हो, तुम्हारी कृपा से मुझे अवश्य ही कृष्ण-भक्ति प्राप्त होगी।'

प्रातः स्मरणीय, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि यह भगवान की एक अद्भुत चमत्कारमयी लीला है कि श्रीमन् महाप्रभु की योगमाया नामक शक्ति के प्रभाव से भक्त-लोग श्रीमहाप्रभुजी के प्रति स्वाभाविक रूप से आकृष्ट होने पर भी उनके परमेश्वर रूप को नहीं समझ पा रहे थे।
गया से लौटने बाद, श्रीमन् महाप्रभु जी श्रीकृष्ण-प्रेम के अद्भुत विकार प्रदर्शित करने लगे। उनकी माता श्रीमती शची देवी, वात्सल्य भाव से यही समझती थीं कि उनके पुत्र को वायुरोग हो गया है। 

ऐसे में एक दिन श्रीवास पण्डित जी श्रीमन् महाप्रभु जी के पास गये तो श्रीनिमाई ने आपको पूछा कि सब लोग मुझे वायु-रोग से ग्रसित बता रहे हैं, आप ही बताईये कि मुझे क्या हुआ है?

उत्तर में श्रीवास पण्डित हँसते हुये कहने लगे -- 'यह आपने अच्छी कही। आपको जैसा वायु-रोग हुआ है, वैसा वायु-रोग तो मैं भी चाहता हूँ। आपके ऊपर श्रीकृष्ण का अनुग्रह हुआ है, महाभक्ति योग के लक्षण हैं यह।'
श्रीवास पण्डित की जय !!!!

आपके तिरोभाव तिथि-पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!

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