बुधवार, 28 मई 2014

मैं कौन हूँ? भगवान को हम कैसे जान सकते हैं?

नन्द नन्दन भगवान श्रीकृष्ण जब धर्म की स्थापना व अध्यात्म जगत की शिक्षा देने के लिये श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में आये तो उन्होंने श्रीसनातन गोस्वामी जी के माध्यम से हमें बताया कि हम सभी जीव भगवान की तटस्था शक्ति के अंश हैं। अथवा भगवान के नित्य दास हैं।

'जीवेर स्वरूप हय कृष्णेर नित्य दास', …नित्य दास का अर्थ है की हम पहले भी दास थे, अभी भी दास है और भविष्य में भी दास ही रहेंगे।                              
भगवान को जानने के लिये, पहले 'मैं कौन हूँ ' -- उसको अनुभव करन बहुत जरूरी है। 

यह अनुभव कैसे हो  सकता है इसको हमारे पूर्वाचार्य श्रील भक्ति विनोद
ठाकुर जी ने एक भजन में लिखा -- 'गाइते गाइते नाम कि दशा  हइल, ' 'कृष्ण नित्य दास मुईं' हृदये स्फुरिल ।'………अर्थात श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी कहते हैं, हरे कृष्ण महामन्त्र करते करते मैं कृष्ण का नित्य दास हूँ यह मेरे हृदय में स्फुरित हो गया है…।

जहाँ तक रही भगवान को जानने की बात …आत्म-ज्ञान होने के बाद, 
शुद्ध भक्ति की साधना लगातर चलाये रखने पर,......

भगवान का तत्त्व अनुभव होने लगता है।

श्वेताश्वर उपनिषद् में लिखा है 'यस्य देवे परा भक्ति……' अर्थात् जिसकी भगवान में अनन्य भक्ति होती है, ......

भगवान में जैसी पूज्य बुद्धि, भगवान में जैसी सेव्य बुद्धि, भगवान में जैसी अनन्यता, उसी प्रकार यदि गुरु में भी सेव्य बुद्धि, पूज्य बुद्धि, अनन्यता हो तो सिर्फ़ भगवान का ज्ञान ही नहीं सारे शास्त्रों का सही ज्ञान हृदय में प्रकाशित हो जाता है।

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