मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

जब श्रीहनुमान जी सारा भोजन खा गये

भगवान श्रीरामचन्द्र जी के राज्याभिषेक को बहुत समय हो चुका था। एक बार माता जानकी के मन में वात्सल्य प्रेम उमड़ा। उन्होंने एक दिन हनुमान जी से कहा -- 'हनुमान ! कल मैं तुम्हें अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊँगी।'

जगन्नमाता स्वयं भोजन बनाकर खिलायें, यह सौभाग्य किसे मिलता है?  जो भी हो, दूसरे दिन बड़े स्नेह से खूब उल्लास के साथ विदेहनन्दिनी ने नाना प्रकार के व्यन्जन बनाए और हनुमान जी को अपने सामने आसन पर बैठाकर भोजन परोसने लगीं।  

निखिलेश्वरी श्रीरामवल्लभा स्वयं हाथों से परोस रहीं थीं और उनके परम स्नेह-भाजन, लाड़ले-पुत्र हनुमान भोजन कर रहे थे।
थाली में जो कुछ पड़ता आप एक ही ग्रास में मुख में ले लेते। श्रीजानकी जी को चिन्ता होने लगी। अयोध्या सम्राट के रसोई-घर के व्यन्जन स्माप्त होने को आए परन्तु हनुमान जी खाये ही जा रहे हैं।

अन्त में जनकनन्दिनी ने लक्ष्मण जी को बुलवाया और अपनी कठिनाई बतलायी तो लक्ष्मण जी ने कहा -- 'ये तो रुद्र के अवतार हैं, इनको भला कौन तृप्त कर सकता है?'
तब लक्ष्मण जी ने तुलसी के पत्ते पर चन्दन से 'राम' लिख दिया और हनुमान जी के भोजन पात्र में डाल दिया। तुलसी दल मुँह में जाते ही हनुमान जी ने तृप्ति की डकार ली और पात्र में बचे अन्न को अपने पूरे शरीर पर मल मल लिया तथा खुशी से नृत्य करते हुए 'राम' नाम का कीर्तन करने लगे।

श्रीराम भक्त - हनुमान जी की जय !!!!!

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