सोमवार, 28 अप्रैल 2014

रावण क्या वाकई…में…..श्रीमती सीता देवी को ले गया था?

भगवान की लीलायें अद्भुत हैं, ये हमारी समझ से परे हैं। हमारी इन्द्रियाँ सीमित हैं, अतः हमारी सोच की शक्ति भी सीमित है। किन्तु ऐसा नहीं है कि जो हमने सोचा ही नहीं, वो हो नहीं सकता।
भगवान तो पूर्ण हैं, उनकी लीलायें भी पूर्ण हैं। लोग कई बार सोचते हैं कि भगवान राम की पत्नी श्रीमती सीता देवी को एक राक्षस रावण हरण कर ले गया?

श्रीमती सीता जी तो साक्षात् शक्ति हैं तो फिर तमोगुणी रावण सीता जी को कैसे स्पर्श कर पाया?

श्रीकूर्म पुराण में ऐसा वर्णन आता है, कि जब इस लीला का समय समीप आया तब भगवान श्रीराम ने श्रीमती सीता जी से कहा -- 'देवी ! लीला का समय आ
गया है। अतः जो उपयुक्त हो, वह आप करें।'

श्रीमति सीता जी ने अग्नि प्रजव्लित की व अग्नि के माध्यम से धाम को लौट गयीं। अग्नि से श्रीमती सीता जी का रूप लेकर उनकी छवि प्रकट हो गई । इन्हीं माया सीता का हरण हुआ, व इन्हीं माया सीता जी को रावण उठा कर ले गया था।
अयोध्या धाम लौटने से पहले, अग्नि परीक्षा के समय माया सीता जी अग्नि में प्रवेश कर गयीं व मूल सीता जी अग्नि से प्रकट हो गयीं।

हम लोगों की आँखों की देखने की सीमा है। वह बहुत समीप या बहुत दूर तक नहीं देख सकतीं। हमारे कान बहुत ऊँचा या बहुत धीमा नहीं सुन सकते। हमारी जिह्वा बहुत गर्म या बहुत ठंडा, नहीं निगल सकती। इसी प्रकार हम अति तप्त वस्तु या बहुत ठंडी वस्तु पर बैठ नहीं सकते, इत्यादि।

हमारी बुद्धि की भी सीमा है। जैसे हमारी इन्द्रियाँ अपूर्ण हैं, वैसे ही हमारी बुद्धि भी अपूर्ण है। जबकि भगवान, उनका नाम, रूप, गुण, लीला, उनकी शक्ति, सब पूर्ण हैं। अपनी अपूर्ण इन्द्रियों से हम पूर्ण के बारे में सब कुछ जान नहीं सकते। भलाई इसी में है कि हम उन्हें स्मरण करते-करते उनके धाम का मार्ग प्रशस्त करें ।

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