एक बार की बात है, बंगाल के वर्धमान ज़िले के एक ब्राह्मण श्रीजीवन चक्रवर्ती, काशी में रहते हुए श्रीशिव की बहुत भक्ति करते थे । आशुतोष शिव जी उसकी भक्ति से बहुत प्रसन्न थे।
ब्राह्मण गरीब था व धनी होना चाहता था। शिव जी को यह पता था, किन्तु आप उसका कल्याण चाहते थे।
एक दिन आप उसके समक्ष प्रकट् हो गये।
ब्राह्मण ने आपको आया देख, आपको प्रणाम किया व आपके कहने पर कुछ ऐसा माँगा, 'आप मुझे धनी बना दीजिए।'
शिव जी महाराज जी ने कहा ---- 'वृन्दावन में जाओ व वहाँ सनातन गोस्वामी से मिलना। सनातन गोस्वामी जी के पास धन है। वहाँ जाकर उनको कहना कि मैंने आपको भेजा है व वे आपको धन दे दें।'

शिव जी यह कह कर अन्तर्धान हो गये।
ब्राह्मण खुशी-खुशी वृन्दावन की ओर चल दिया। वहाँ पहुँच कर उसने एक राहगीर से श्रील सनातन गोस्वामी जी के बारे में पूछा । राहगीर ने दूर एक मधुकरी (माँग कर खाने वाले), कौपीनधारी (छोटा सा वस्त्र), वृद्ध - कमज़ोर व्यक्ति की ओर इशारा करके बताया कि आप ही सनातन गोस्वामी हैं।
ब्राह्मण को विश्वास ही नहीं हुआ। वह सोचने लगा कि ऐसे व्यक्ति पास धन कैसे होगा? ज़रूर शिव जी महाराज को गलती लगी होगी या उसके सुनने में भूल हो गयी होगी।
फिर उसने विचार किया कि यहाँ तक आ ही गया हूँ तो मिल ही लेता हूँ ।
सन्ध्या का समय था, श्रीसनातन गोस्वामी अपनी कुटिया में लौट चुके थे। ब्राह्मण ढूँढता-ढूँढता वहाँ पहुँचा । वहाँ पहुँच कर प्रणाम किया। श्रील सनातन गोस्वामी जी ने उसको बड़े ही प्रेम से अपने पास बिठाया। जल, इत्यादि देने के बाद, पूछा कि कैसे आये?
ब्राह्मण ने श्रीशिव की बात सुना दी।
श्रील सनातन गोस्वामी जी ने कहा, 'मैं तो माँग कर खाता हूँ । मेरे पास
भला धन कहाँ से आयेगा?'
ब्राह्मण ने कहा, 'मैं भी यही सोच रहा था। ज़रूर शिव जी महाराज को गलती लगी होगी या मुझे सुनने में भूल हो गयी होगी।'
ब्राह्मण दुःखी होकर लौट गया।
इधर श्रील सनातन गोस्वामी जी सोचने लगे कि शिवजी महाराज ने इस ब्राह्मण को मेरे पास क्यों भेजा?
बहुत सोचने पर आपको ध्यान में आया कि आपके पास एक स्पर्श-मणि है, जिससे लोहे की किसी वस्तु को छुआ दिया जाये तो वह सोने में बदल जाती है।
आपने तुरन्त किसी को भेज कर ब्राह्मण को वापिस बुलवाया व उसे इशारा करते हुए कहा उस कोने में धूल -मिट्टी के नीचे शायद कोई स्पर्शमणि होगी । थोड़ा ढूँढने के बाद ब्राह्मण को मणि मिल गयी, मणि पाकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि अब उसके जितना धनवान पृथ्वी पर और कोई नहीं होगा। ऐसा सोचकर, श्रील सनातन गोस्वामी जी को धन्यवाद देता हुआ वह ब्राह्मण वहाँ से चल दिया।
लेकिन कुछ दूर जाकर शिवजी महाराज जी की कृपा से अचानक उसके मन में यह विचार आया की श्रीसनातन गोस्वामी को याद भी नहीं था की
उनके पास यह मणि है और उन्होंने इसे गंदगी में फेंका हुआ था, इसका अर्थ है कि उनके पास इससे भी अधिक मूल्यवान वस्तु है, जो उनको इस मणि की चिंता भी नहीं थी और इतनी आसानी से मुझे दे दिया।
वह दोबारा श्रीसनातन गोस्वामी के पास जा पहुँचा व अपना सन्देह व्यक्त किया।
श्रीसनातन गोस्वामी जी मुस्कुराये व बोले कि इस संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है श्रीकृष्ण-नाम चिन्तामणि । जिसके आगे यह सारी मणियाँ तुच्छ हैं। यदि आप भी उस मणि को चाहते हो तो इस स्पर्श-मणि को यमुना में बहा कर, स्नान करके आओ ।
शिवजी महाराज जी की अहैतुकी कृपा से श्रील सनातन गोस्वामी जी की बातें ब्राह्मण के अन्तःकरण को स्पर्श कर गयीं।
उसके बाद ब्राह्मण ने वैसा ही किया जैसा सनातन गोस्वामी उसको बताते रहे ।
यहाँ पर हम पाठकों को बताना चाहते हैं कि संन्यास लेने से पहले श्रील सनातन गोस्वामी जी बंगाल के बादशाह हुसैन शाह के प्रधान-मन्त्री थे ।
शिव का अर्थ होता है --- 'मंगल' ।
वैष्णव-अग्रगण्य श्रीशिव जी महाराज अगर किसी पर वास्तविक रूप से
प्रसन्न हों, तो उस व्यक्ति का नित्य कल्याण कैसे होगा, इसका मार्ग भी बना देते हैं।
परम वैष्णव शिव जी महाराज की जय !!!!
ब्राह्मण गरीब था व धनी होना चाहता था। शिव जी को यह पता था, किन्तु आप उसका कल्याण चाहते थे।
एक दिन आप उसके समक्ष प्रकट् हो गये।
ब्राह्मण ने आपको आया देख, आपको प्रणाम किया व आपके कहने पर कुछ ऐसा माँगा, 'आप मुझे धनी बना दीजिए।'
शिव जी महाराज जी ने कहा ---- 'वृन्दावन में जाओ व वहाँ सनातन गोस्वामी से मिलना। सनातन गोस्वामी जी के पास धन है। वहाँ जाकर उनको कहना कि मैंने आपको भेजा है व वे आपको धन दे दें।'

शिव जी यह कह कर अन्तर्धान हो गये।
ब्राह्मण खुशी-खुशी वृन्दावन की ओर चल दिया। वहाँ पहुँच कर उसने एक राहगीर से श्रील सनातन गोस्वामी जी के बारे में पूछा । राहगीर ने दूर एक मधुकरी (माँग कर खाने वाले), कौपीनधारी (छोटा सा वस्त्र), वृद्ध - कमज़ोर व्यक्ति की ओर इशारा करके बताया कि आप ही सनातन गोस्वामी हैं।

फिर उसने विचार किया कि यहाँ तक आ ही गया हूँ तो मिल ही लेता हूँ ।
सन्ध्या का समय था, श्रीसनातन गोस्वामी अपनी कुटिया में लौट चुके थे। ब्राह्मण ढूँढता-ढूँढता वहाँ पहुँचा । वहाँ पहुँच कर प्रणाम किया। श्रील सनातन गोस्वामी जी ने उसको बड़े ही प्रेम से अपने पास बिठाया। जल, इत्यादि देने के बाद, पूछा कि कैसे आये?
ब्राह्मण ने श्रीशिव की बात सुना दी।
श्रील सनातन गोस्वामी जी ने कहा, 'मैं तो माँग कर खाता हूँ । मेरे पास
भला धन कहाँ से आयेगा?'
ब्राह्मण ने कहा, 'मैं भी यही सोच रहा था। ज़रूर शिव जी महाराज को गलती लगी होगी या मुझे सुनने में भूल हो गयी होगी।'
ब्राह्मण दुःखी होकर लौट गया।
इधर श्रील सनातन गोस्वामी जी सोचने लगे कि शिवजी महाराज ने इस ब्राह्मण को मेरे पास क्यों भेजा?
बहुत सोचने पर आपको ध्यान में आया कि आपके पास एक स्पर्श-मणि है, जिससे लोहे की किसी वस्तु को छुआ दिया जाये तो वह सोने में बदल जाती है।
आपने तुरन्त किसी को भेज कर ब्राह्मण को वापिस बुलवाया व उसे इशारा करते हुए कहा उस कोने में धूल -मिट्टी के नीचे शायद कोई स्पर्शमणि होगी । थोड़ा ढूँढने के बाद ब्राह्मण को मणि मिल गयी, मणि पाकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि अब उसके जितना धनवान पृथ्वी पर और कोई नहीं होगा। ऐसा सोचकर, श्रील सनातन गोस्वामी जी को धन्यवाद देता हुआ वह ब्राह्मण वहाँ से चल दिया।
लेकिन कुछ दूर जाकर शिवजी महाराज जी की कृपा से अचानक उसके मन में यह विचार आया की श्रीसनातन गोस्वामी को याद भी नहीं था की
उनके पास यह मणि है और उन्होंने इसे गंदगी में फेंका हुआ था, इसका अर्थ है कि उनके पास इससे भी अधिक मूल्यवान वस्तु है, जो उनको इस मणि की चिंता भी नहीं थी और इतनी आसानी से मुझे दे दिया।
वह दोबारा श्रीसनातन गोस्वामी के पास जा पहुँचा व अपना सन्देह व्यक्त किया।
श्रीसनातन गोस्वामी जी मुस्कुराये व बोले कि इस संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है श्रीकृष्ण-नाम चिन्तामणि । जिसके आगे यह सारी मणियाँ तुच्छ हैं। यदि आप भी उस मणि को चाहते हो तो इस स्पर्श-मणि को यमुना में बहा कर, स्नान करके आओ ।
शिवजी महाराज जी की अहैतुकी कृपा से श्रील सनातन गोस्वामी जी की बातें ब्राह्मण के अन्तःकरण को स्पर्श कर गयीं।
उसके बाद ब्राह्मण ने वैसा ही किया जैसा सनातन गोस्वामी उसको बताते रहे ।
यहाँ पर हम पाठकों को बताना चाहते हैं कि संन्यास लेने से पहले श्रील सनातन गोस्वामी जी बंगाल के बादशाह हुसैन शाह के प्रधान-मन्त्री थे ।
शिव का अर्थ होता है --- 'मंगल' ।
वैष्णव-अग्रगण्य श्रीशिव जी महाराज अगर किसी पर वास्तविक रूप से
प्रसन्न हों, तो उस व्यक्ति का नित्य कल्याण कैसे होगा, इसका मार्ग भी बना देते हैं।
परम वैष्णव शिव जी महाराज की जय !!!!
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