शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

बिना थाली व पत्तल के प्रसाद, ज़मीन पर रखकर भक्तों को खिलाते देख, श्रील प्रभुपाद जी बहुत हैरान हुए…

श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद एक दिन दोपहर में अपने कमरे से बाहर आये। बाहर आकर आपने देखा की सब के लिए प्रसाद जमीन पर ही लगाया गया है, नीचे पत्तलें नहीं हैं। आप बहुत हैरान हुये व उन्होंने मठ के सेवक को पूछा की प्रसाद ऐसे क्यों खिलाया जा रहा है ?
सेवक ने उत्तर दिया की कल रात बहुत तेज आँधी-तूफान आने से केले के सभी पत्ते फट गये, इसलिए प्रसाद बिना केले के पत्ते बिछाये, ज़मीन पर ही खिलाया जा रहा है ।
श्रील प्रभुपाद के मन में बहुत दुःख हुआ की ये सब लोग, अपना घर-बार छोड़ कर मेरे लिए आये और मैं इनको प्रसाद खाने के लिए पत्तलें भी नहीं दे सकता। श्रील प्रभुपाद ने किसी से कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपने कमरे में चले गये।

श्रील भक्ति सारंग गोस्वामी महाराज जी (तब आपका संन्यास नहीं हुआ था, व आप अभी घर पर ही थे) को जब यह बात पता चली तो आपने सोचा की अभी कुछ दिनों में भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु का जन्मोत्स्व आयेगा, तब क्या होगा? 
आप उसी समय कोलकाता चले गये। एक धनी सेठ से मिले, कृष्ण - कथा से उसे इतना प्रभावित कर दिया कि उसने मठ के लिये सेवा स्वीकार कर, एक ट्रक भर के अनाज, तेल-मसाला इत्यादि भेजा। साथ ही साथ आपने 1000 प्लेट, कटोरी, गिलास, इत्यादि की भी व्यवस्था की।

ऐसे प्रतिभाशाली थे आप ।

मठ की सेवा के लिये धन इकट्ठे करने वाले प्रमुख सेवकों में एक आप भी थे।

श्रील भक्ति सारंग गोस्वामी महाराज जी की जय !!!!

आपके आविर्भाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!!

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