मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

भगवान के शूकर अवतार को क्या भोग लगता है?

वराह अवतार दशावतारों में तीसरे अवतार हैं।

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी अपनी पुस्तक दशावतार में बताते हैं कि भगवान का ये अवतार दो बार हुआ। 

स्वयंभुव-मन्वन्तर में भगवान वराह ने ब्रह्मा की नाक से प्रकट् होकर पृथ्वी को समुद्र के तल से ऊपर उठाया था। दूसरी बार आप छठे (चक्षुश-मन्वन्तर)
में प्रकट् हुए जब आपने पृथ्वी को बचाते हुए दैत्य हिरण्याक्ष का वध किया था।

किसी किसी को ऐसा संशय है कि भगवान वराह को क्या भोग लगाया जाता है क्योंकि सुअर गंदगी खाता है ? 

पहली बात तो यह की भगवान के सभी अवतार दिव्य होते हैं, सर्वशक्तिमान होते हैं, व अनन्त गुणों की खान होते हैं। दूसरा अर्चन के नियमानुसार भगवान को आत्मवत् भोग लगता है। अर्थात् भक्त जो स्वयं खाता है, वही पवित्र भाव से अपने इष्टदेव को अर्पण करने के बाद, ग्रहण करता है। 

तीसरी बात, भगवान का वराह अवतार जंगली शूकर के रूप में होता है, न की शहरी सूअर के रूप में। और जंगली वराह (शूकर) गंदगी नहीं खाता । 

एक और बात, जम्मू-कशमीर, दक्षिण भारत, इत्यादी में दशावतारों के मन्दिर पाये जाते हैं, वहाँ पर सभी में वराह भगवान की नाक के ऊपर एक सींग दिखाई देता है, जो कि साधारण सुअर के नहीं होता।

भगवान वराह की जय !!!!

आपकी प्रकट तिथि की जय !!!!!

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