एकादशी व्रत के प्रसंग कें अष्ट द्वादशी व्रत कथा को विशेष भाव से जानना चाहिए।
ब्रह्मवैवर्त्त पुराण में श्री सूत गोस्वामी व श्री शौनक ॠषि संवाद में लिखा है,
'उन्मिलनी व्यंजुली च त्रिस्पृशा पक्षवर्द्धिनी।
जया च विजया चैव जयन्ती पापनाशिनी।
द्वादश्योऽष्टौ महापुण्या: सर्वपापहरा द्विज।
तिथियोगेन जायन्ते चतस्रश्चापरास्तथा।
नक्षत्रयोगाच्च बलात् पापं प्रश्मयन्ति ताः।' (हरि भक्ति विलास 13/265-266)
अर्थात् हे विप्र ! उन्मीलनी, व्यंजुली, त्रिस्पर्शा, पक्षवर्द्धिनी, जया, विजया, जयन्ती व पापनाशिनी -- यह अष्ट महाद्वादशी महापुण्य स्वरूपिणी व सर्वपापहारिणी हैं। इनमें से प्रथम चार तिथियोग के अनुसार व बाद की चार नक्षत्र योग के अनुसार होती हैं।
यह सब पातकराशि विनाशिनी हैं। यह अष्ट द्वादशी तिथियों में से आज जयन्ती महाद्वादशी तिथि है ।
शुक्ला पक्ष की द्वादशी तिथि को अगर रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो वह सर्व पाप हरणे वाली, सर्व पुण्य को देने वाली जयन्ती द्वादशी कहलाती है। चूँकि रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुये थे, अतः इस द्वादशी की भी बहुत महिमा है। इस दिन श्री कृष्ण की जन्म इत्यादि लीला का कीर्तन करना चाहिए।
शास्त्रों में इन सब व्रतों के बहुत से फल बताये गये हैं। किन्तु शुद्ध भक्तगण अपनी इन्द्रियों की इच्छापूर्ति की इच्छा न करके, श्रीकृष्ण-प्रीति व श्रीकृष्ण जी की इच्छा को पूरा करने के लिए व शुद्ध भक्ति के प्रेम फल की प्राप्ति के लिए ही व्रत करते हैं। इन अष्ट द्वादशी व्रत के उपस्थित होने पर शुद्ध भक्तगण एकादशी उपवास न करके इन सब महाद्वादशी व्रत की ही पालना करेंगे। महाद्वादशी का व्रत करने से ही एकादशी का सही व्रत होता है व श्री हरि की प्रसन्नता होती है।
जयन्ती महाद्वादशी तिथि महामहोत्सव की जय !!!!
ब्रह्मवैवर्त्त पुराण में श्री सूत गोस्वामी व श्री शौनक ॠषि संवाद में लिखा है,
'उन्मिलनी व्यंजुली च त्रिस्पृशा पक्षवर्द्धिनी।
जया च विजया चैव जयन्ती पापनाशिनी।
द्वादश्योऽष्टौ महापुण्या: सर्वपापहरा द्विज।
तिथियोगेन जायन्ते चतस्रश्चापरास्तथा।
नक्षत्रयोगाच्च बलात् पापं प्रश्मयन्ति ताः।' (हरि भक्ति विलास 13/265-266)
अर्थात् हे विप्र ! उन्मीलनी, व्यंजुली, त्रिस्पर्शा, पक्षवर्द्धिनी, जया, विजया, जयन्ती व पापनाशिनी -- यह अष्ट महाद्वादशी महापुण्य स्वरूपिणी व सर्वपापहारिणी हैं। इनमें से प्रथम चार तिथियोग के अनुसार व बाद की चार नक्षत्र योग के अनुसार होती हैं।
यह सब पातकराशि विनाशिनी हैं। यह अष्ट द्वादशी तिथियों में से आज जयन्ती महाद्वादशी तिथि है ।
शुक्ला पक्ष की द्वादशी तिथि को अगर रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो वह सर्व पाप हरणे वाली, सर्व पुण्य को देने वाली जयन्ती द्वादशी कहलाती है। चूँकि रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुये थे, अतः इस द्वादशी की भी बहुत महिमा है। इस दिन श्री कृष्ण की जन्म इत्यादि लीला का कीर्तन करना चाहिए।
शास्त्रों में इन सब व्रतों के बहुत से फल बताये गये हैं। किन्तु शुद्ध भक्तगण अपनी इन्द्रियों की इच्छापूर्ति की इच्छा न करके, श्रीकृष्ण-प्रीति व श्रीकृष्ण जी की इच्छा को पूरा करने के लिए व शुद्ध भक्ति के प्रेम फल की प्राप्ति के लिए ही व्रत करते हैं। इन अष्ट द्वादशी व्रत के उपस्थित होने पर शुद्ध भक्तगण एकादशी उपवास न करके इन सब महाद्वादशी व्रत की ही पालना करेंगे। महाद्वादशी का व्रत करने से ही एकादशी का सही व्रत होता है व श्री हरि की प्रसन्नता होती है।जयन्ती महाद्वादशी तिथि महामहोत्सव की जय !!!!





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