एक दिन एक सर्वज्ञ ज्योतिषी श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के घर आया। उसका यथा योग्य सम्मान कर महाप्रभुजी ने उससे प्रश्न किया -- 'मैं पिछ्ले जन्म में कौन था? गणना करके बताइये।'
महाप्रभु जी के वाक्य सुनकर वह सर्वज्ञ ज्योतिषी गणना करने लगा। गणना करते हुए ज्योतिषी ध्यान में एक महान् ज्योतिर्मय मूर्ति को देखने लगा, जो अनन्त वैकुण्ठों एवं अनन्द ब्रह्माण्डों का आश्रय रूप हैं, तो परमतत्व हैं, परब्रह्म एवं स्वयं भगवान् हैं -- महाप्रभु जी के इस रूप को देख कर सर्वज्ञ-ज्योतिषी चित्रवत् रह गया।
ज्योतिषी के मुख से कुछ भी वचन न निकल सके। चुप साध कर रह गया वह। महाप्रभु जी ने पुनः प्रश्न किया तो वह सचेत होकर कहने लगा -- 'पूर्व जन्म में आप समस्त जगत् के आश्रय , सर्व-ऐश्वर्यमय, परिपूर्ण, स्वयं भगवान् थे'। सर्वज्ञ ने और कहा, 'जो स्वरूप पहले जन्म में आपका था, अब भी वही स्वरूप है। श्री नित्यानन्द भी तुम्हारा ही एक स्वरूप है जिसका निर्णय सहज में कोई नहीं कर सकता।'
श्रीमहाप्रभु जी उसके से ये वचन सुन कर हँस पड़े और कहने लगे कि तुम कुछ नहीं जानते हो। मैं तो पिछले जन्म से जाति का ग्वाला था। महाप्रभु ने कहा, 'मेरा पहले एक गोप के घर में जन्म हुआ था, वहाँ मैं गायों को चराने वाला ग्वाला था। उसी पुण्य के प्रभाव से अब ब्राह्मण का लड़का हुआ हूँ ।'
सर्वज्ञ ने कहा , 'यह बात तो मैंने भी ध्यान में देखीं थीं। किन्तु उस ग्वाले-बाल के वेश में आपका ऐश्वर्य देख कर मैं अवाक् रह गया था। आपके उस (श्रीकृष्ण) रूप को और इस (श्रीगौरांग) रूप को मैं एक ही देखता हूँ । परन्तु कभी-कभी कुछ भेद भी देखता हूँ । यह सब तुम्हारी माया ही है। आप जो हो, सो हो, मैं तो आपको नमस्कार करता हूँ।' श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने सन्तुष्ट होकर उसे प्रेम प्रदान कर कृतार्थ कर दिया।
महाप्रभु जी के वाक्य सुनकर वह सर्वज्ञ ज्योतिषी गणना करने लगा। गणना करते हुए ज्योतिषी ध्यान में एक महान् ज्योतिर्मय मूर्ति को देखने लगा, जो अनन्त वैकुण्ठों एवं अनन्द ब्रह्माण्डों का आश्रय रूप हैं, तो परमतत्व हैं, परब्रह्म एवं स्वयं भगवान् हैं -- महाप्रभु जी के इस रूप को देख कर सर्वज्ञ-ज्योतिषी चित्रवत् रह गया।
ज्योतिषी के मुख से कुछ भी वचन न निकल सके। चुप साध कर रह गया वह। महाप्रभु जी ने पुनः प्रश्न किया तो वह सचेत होकर कहने लगा -- 'पूर्व जन्म में आप समस्त जगत् के आश्रय , सर्व-ऐश्वर्यमय, परिपूर्ण, स्वयं भगवान् थे'। सर्वज्ञ ने और कहा, 'जो स्वरूप पहले जन्म में आपका था, अब भी वही स्वरूप है। श्री नित्यानन्द भी तुम्हारा ही एक स्वरूप है जिसका निर्णय सहज में कोई नहीं कर सकता।'सर्वज्ञ ने कहा , 'यह बात तो मैंने भी ध्यान में देखीं थीं। किन्तु उस ग्वाले-बाल के वेश में आपका ऐश्वर्य देख कर मैं अवाक् रह गया था। आपके उस (श्रीकृष्ण) रूप को और इस (श्रीगौरांग) रूप को मैं एक ही देखता हूँ । परन्तु कभी-कभी कुछ भेद भी देखता हूँ । यह सब तुम्हारी माया ही है। आप जो हो, सो हो, मैं तो आपको नमस्कार करता हूँ।' श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने सन्तुष्ट होकर उसे प्रेम प्रदान कर कृतार्थ कर दिया।




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