श्रद्धा दो प्रकार की होती है।
1) लौकिकी
2) तात्विकी
सामाजिक रीति-रिवाज़ों को देख कर जब भगवान को प्रणाम किया जाता है, या मन्दिर में जाया जाता है और भक्तों की सेवा की जाती है, उसे लौकिकी श्रद्धा कहते हैं।
इस विश्वास के साथ भगवान की जब सेवा की जाती है, की उनकी सेवा करने से परिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक व अन्यान्य धार्मिक सभी काम हो जाते हैं और जब हम भगवान को सभी ईश्वरों का ईश्वर, सर्वशक्तिमान समझते हैं तो वह तात्विकी श्रद्धा कहलाती है।
वैसे श्रद्धा शब्द का अर्थ होता है - सुदृढ़ विश्वास यानि की भगवान की भगवत्ता में सुदृढ़ विश्वास।
तात्विकी श्रद्धा होने से ही भगवान का भजन होता है।


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